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बिलासपुरराजनीति

होली है….लेकिन सही है…15 साल के सूखेपन को हराभरा करने कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अपनाया नया पैंतरा…

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बिलासपुर। पंद्रह साल के लंबे इंतजार के बाद प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस की वापसी हुई है। जनता ने जिस तरह से कांग्रेस पर भरोसा जताया, उससे कांग्रेसियों की बांछें खिल गई हैं। अब 15 साल के सूखेपन को हराभरा करने के लिए कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने नया पैंतरा अख्तियार कर लिया है। मीडिया से कभी दूरी बनाकर रखने वाले ये नेता और कार्यकर्ता अब कुछ ज्यादा ही रुचि दिखाने लगे हैं। कांग्रेसियों के मन में अचानक आए बदलाव को जानने के लिए हमने काफी मशक्कत की। मीडिया में प्रकाशित खबरों को टटोला। जिसके बारे में खबरें प्रकाशित हुईं, उसके दूसरे दिन की दिनचर्या पर नजर रखी। इस दौरान जो नतीजे सामने आए, वह बेहद चौंकाने वाले हैं। यह जानकार आपको हैरानी होगी। कोई बिना लागत लगाए भी लाखों रुपए की दुकान खोल सकता है। हम जो बता रहे हैं, आप उस पर मंथन कर खुद भी नतीजे पर पहुंच सकते हैं।

हम बात करते हैं उस समय की, जब छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया। उस समय राज्य में कांग्रेस बहुमत पर थी। इसलिए अजीत जोगी को राज्य की सत्ता विरासत में मिल गई। उनके सत्ता संभालते ही बिलासपुर जिले में ही नहीं, प्रदेश में नए-नए नेता पैदा हो गए और मीडिया में कुछ दिनों की सुर्खियां बटोरने के बाद नामचीन नेता बन गए। तीन साल के जोगी शासनकाल में इन नेताओं की ही चलती रही, पर उस समय कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं का काम करने का तरीका अलग था। 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ से सत्ता की चॉबी फिसल गई और भाजपा के हाथों में चली गई। फिर भी दो-तीन साल तक कांग्रेस के ये नामचीन नेता दम लगाते रहे और मीडिया में स्थान भी बनाते रहे। धीरे-धीरे ये मीडिया से दूरी बनाते रहे। 2008 और 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। दोनों ही बार भाजपा सत्ता में आई। उस समय अखबार और न्यूज चैनल का काफी प्रभाव था। 2008 से 2018 तक कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता बेरोजगार रहे। 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की धमाकेदार वापसी हुई है। इससे मायूस, हताश और बेगारी काट रहे कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता फूले नहीं समा रहे हैं। इसके साथ ही मीडिया को लेकर उनके मन में बदलाव आ गया है। ध्यान रहे कि इस समय अखबार, न्यूज चैनल के साथ न्यूज पोर्टल ने भी अपना अच्छा-खासा स्थान बना लिया है। यह बताने का मतलब साफ है कि कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं की गिद्ध नजर तीनों तरह की मीडिया पर लगी हुई है। दिनभर सोशल मीडिया और न्यूज चैनल में चल रहीं खबरों पर ये अपडेट तो रह ही रहे हैं। सुबह अखबार भी चांट रहे हैं। इस दौरान ये नेता और कार्यकर्ता उन खबरों को ढूंढते रहते हैं, जो किसी के निगेटिव है। मसलन, किसी व्यापारी, उद्योगपति या फिर अधिकारी-कर्मचारी के खिलाफ जमीन कब्जे, भ्रष्टाचार की खबरें चल रही हैं तो ये कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता सीधे उनके हितचिंतक बन जाते हैं। खुद ही फोन लगाते हैं और कहते हैं कि चिंता करने की कोई बात नहीं है। सरकार हमारी है। आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा। दूसरे दिन यही व्यापारी, उद्योगपति हो या फिर अधिकारी कर्मचारी, संबंधित नेता या कार्यकर्ता के कंधे से कंधा मिलाकर शहर में घूमते नजर आ जाते हैं। मतलब साफ है। कांग्रेसी नेता या कार्यकर्ता की दुकान संबंधित के धंधे में खुल गई है। अब ये बताना जरा मुश्किल होगा कि उनके बीच रेट कितना तय होता है।

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