Advertisement
स्वास्थ्य

बड़ा खुलासा: दूसरी बार संक्रमित होने पर मिले ज्यादा वायरस, बिना लक्षण वाले मरीजों को दोबारा संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा…

दुनिया भर में कोरोना के दोबारा संक्रमण को लेकर बहस छिड़ी हुई है। यह कहा जा रहा है कि ऐसे मामले दुर्लभ होते है। अभी तक की रिपोर्ट यह भी बता रही थी कि दोबारा संक्रमण कम खतरनाक है। लेकिन देश में हुए पहले अध्ययन में यह दावा किया गया है कि दोबारा संक्रमण पहले से कहीं ज्यादा घातक हो सकता है। क्योंकि दूसरी बार संक्रमित मरीजों के शरीर में वायरस की संख्या पहले से ज्यादा पाई गई है।

यह अध्ययन संभवत पूरी दुनिया का पहला अध्ययन है, जो दो बिना लक्षणों वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर किया गया है, जिन्हें कुछ ही महीनों के भीतर दोबारा कोरोना संक्रमण हुआ। दोनों व्यक्तियों में दोनों बार कोई लक्षण नहीं दिखे। यह घटना भी विश्व की पहली है। इस अध्ययन में बाकायदा इनमें पाए गए कोरोना वायरस की जेनेटिक संरचना का अध्ययन किया गया। नतीजे और भी चौंकाने वाले हैं।

मेडिकल जर्नल ‘क्लिनिकल इंफेक्सियस डिसीज’ में प्रकाशित शोध के अनुसार नोएडा के एक अस्पताल में कार्यरत 25 साल के पुरुष तथा 28 वर्ष की महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता रुटीन जांच में क्रमशः पांच और 17 मई को कोरोना संक्रमित निकले। उपचार के बाद 13 और 27 मई को दोनों की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई। दोनों में कोई लक्षण नहीं थे। इसके बाद इन दोनों कार्मिकों की रुटीन जांच में 21 अगस्त एवं 5 सितंबर को फिर से कोरोना संक्रमित पाया गया। उपचार के बाद 14वें एवं छठवें दिन इनकी रिपोर्ट फिर से निगेटिव पाई गई।

दोनों मामलों का सीएसआईआर के इंस्टीट्यूट आफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलाजी (आईजीआईबी), गर्वमेंट इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज ग्रेटर नोएडा तथा एकेडमी आफ साइंटिफिक एंड इनोवेटिव रिसर्च के शोधकर्ताओं ने गहन अध्ययन किया। दोनों संक्रमणों के दौरान वायरस के आरएनए की जेनेटिक संचरना का भी अध्ययन किया। इसके दो चौंकाने वाले नतीजे निकले हैं। पहले के संक्रमण की तुलना में दूसरी बार दोनों मरीजों में वायरल लोड ज्यादा पाया गया। वायरल लोड जितना ज्यादा होता है, बीमारी उतनी ज्यादा घातक हो सकती है। पहले संक्रमण में मरीज में पहली बार वायरल लोड 89.08 फीसदी था जो दूसरी बार 99.96 फीसदी हो गया। दसरे मरीज में यह 85.60 से बढ़कर 92.14 फीसदी हो गया। दूसरे, एक मरीज में वायरस की जेनेटिक संरचना में बड़ा बदलाव देखा गया। यह बदलाव संक्रमण को बेअसर करने वाली एंटीबाडीज के खिलाफ वायरस में प्रतिरोधक क्षमता पैदा होने का संकेत देता है। प्रश्न यह है कि जब दोबारा संक्रमण घातक है तो दोनों मरीजों में लक्षण क्यों नहीं दिखे। संभवत उनके शरीर के मजबूत प्रतिरोधक तंत्र की वजह से ऐसा हुआ।

शोध के प्रमुख लेखक श्रीधर शिवाशुब्बू ने कहा कि यह अध्ययन बताता है बिना लक्षणों के बगैर भी दोबारा संक्रमण हो सकता है। दूसरे, वायरल लोड अधिक होना भी चिंताजनक है। इसी प्रकार वायरस में जो अनुवांशिक बदलाव देखा गया है उस पर भी आगे शोध किए जाने की जरूरत है। शोध टीम में शामिल अन्य लोगों में विवेक गुप्ता, राहुल सी. भोयर, अभिनव जैन, सौरभ श्रीवास्तव, रश्मि उपाध्याय, मोहम्मद इमरान, बनी जौली, मोहित कुमार दिवाकर, दीक्षा, शर्मा, पारस सहगल, ज्ञान रंजन, राकेश गुप्ता तथा विनोद स्कारिया शामिल थे।

error: Content is protected !!