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चला गया वो पत्रकार जो इंदिरा की इमरजेंसी के सामने चट्टान बन गया था

(ताज़ाख़बर36गढ़) आज पत्रकारिता के लिए एक काला दिन है। आज हमारे बीच वरिष्ठ पत्रकार और कई महती किताबों के रचयिता कुलदीप नैयर नहीं रहे। कुलदीप नैयर उन पत्रकारों में से थे जो आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार के खिलाफ खड़े अपने संघर्ष की लड़ाई लड़ रहे थे। आज जब एक बार फिर पत्रकारिता की आज़ादी पर सवाल खड़े हो रहे हैं तो हमें कुलदीप जैसे पत्रकारों की कमी हमेशा खलेगी।

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक कुलदीप नैयर का दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह 95 वर्ष के थे। उनके परिवार ने गुरुवार को उनके निधन की पुष्टि की। नैयर ने रात 12.30 बजे एस्कॉर्ट्स अस्पताल में आखिरी सांस ली। उनका अंतिम संस्कार गुरुवार दोपहर एक बजे किया जाएगा। मानवाधिकार कार्यकर्ता रहे नैयर 1990 में ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त भी रह चुके हैं और उन्हें राज्यसभा के लिए भी नामित किया गया था। स्तंभकार नैयर ने ‘बियॉन्ड द लाइन्स’ और ‘इंडिया आफ्टर नेहरू’ सहित कई किताबें भी लिखी हैं।

वो कुलदीप ही थे जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से एक ऐसा कानून बनाने की मांग की थी जो किसी राष्ट्रीय स्वयं सेवक को उच्च पद के लिए अयोग्य बनाए।

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