इससे पहले मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर एवं न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह रासुका लगाने से संबंधित सभी कानूनी पहलुओं पर विचार कर डॉ. कफील खान के खिलाफ एनएसए के आरोपों को रद कर दिया। कोर्ट ने कहा कि रासुका के तहत गिरफ्तारी अवैध थी इसलिए रासुका हटाई जा रही है। कोर्ट ने सरकार के इस तर्क को नहीं माना कि डॉ. कफील खान जेल से अब भी अलीगढ़ युनिवर्सिटी के छात्रों को भड़काने का काम कर रहे थे।
कोर्ट ने कहा कि जेल में बंद होकर डॉ. कफील खान के पास ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसका प्रयोग कर वह जेल के अंदर से छात्रों को भड़काते। कोर्ट ने सरकार की इस दलील को भी नहीं माना कि डॉ. कफील खान ने देश विरोधी व भड़काऊ भाषण दिया है। कहा कि रासुका लगाने से पूर्व डॉ. कफील को सीडी नहीं दी गई, जिसे देख या सुनकर वह इस संबंध में अपनी सफाई दे सकें।
अलीगढ़ में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भड़काऊ भाषण देने के आरोप में वहां के डीएम ने 13 फरवरी 2020 को डॉ कफील खान की रासुका में निरुद्धि का आदेश किया था। बाद में निरुद्धि की अवधि दो बार बढ़ाई भी गई। हालांकि डॉ कफील खान को गोरखपुर के गुलहरिया थाने में दर्ज एक मुकदमे में 29 जनवरी 2020 को ही गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका था। जेल में रहते हुए रासुका तामील कराया गया है।
डॉ. कफील खान की मां नुजहत परवीन ने बेटे की रिहाई के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल करके रासुका आदेश को चुनौती दी थी। कहा गया कि डॉ. कफील खान को गलत फंसाया गया है। उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिससे उन पर रासुका लगाई जा सके। याचिका में आरोप लगाया गया कि डॉ. कफील खान को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है इसलिए उनकी अविलंब रिहाई की जाए। इससे पहले डॉ कफील खान की रासुका को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को मूल पत्रावली भेजते हुए इस मामले को निस्तारित करने का निर्देश दिया था।