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अनजाने में ही सही लेकिन अहमद पटेल को जिताने में कुछ भूमिका तो अमित शाह की भी है

अनजाने में ही सही लेकिन अहमद पटेल को जिताने में कुछ भूमिका तो अमित शाह की भी है
अहमद पटेल की जीत अमित शाह शायद कभी भुला नहीं पाएंगे. यह भी संयोग ही है कि जिस दिन अमित शाह को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तीन साल हुए उसी दिन उन्हें ऐसी हार का मुंह देखना पड़ा. इसी दिन वे राज्यसभा सदस्य भी बन गए. अब भाजपा के नेता समझ नहीं पा रहे हैं कि वे अपने अध्यक्ष को बधाई दें या फिर फिलहाल चुप रहें.

पहले भाजपा के छोटे से लेकर बड़े सभी नेताओं ने अमित शाह को बधाई देने की तैयारी की थी. गुजरात से लेकर दिल्ली तक के नेता उन्हें बधाई देने पहुंचने वाले थे. अपने अध्यक्ष की काबिलियत के कायल ये सभी लोग अहमद पटेल को हारा हुआ मान रहे थे. लेकिन पटेल हारने की बजाय जीत गए.
सुनी-सुनाई है कि गुजरात में अपनी इस हार के थोड़े जिम्मेदार अमित शाह भी हैं. अमित शाह ने अपने खासमखास महासचिव भूपेंद्र यादव को वोटों का ऐसा हिसाब बनाने के लिए कहा जिससे अहमद पटेल की हार तय हो. काफी कवायद के बाद भाजपा ने वह फॉर्मूला तैयार कर लिया. फॉर्मूला सीधा था कि अमित शाह और स्मृति ईरानी को 46-46 विधायक वोट देंगे और अहमद पटेल को सिर्फ 44 वोटों पर रोक देंगे. इस तरह पटेल की सीट का फैसला सेकंड प्रेफरेंस वोटों से होता और यहां भाजपा के तीसरे उम्मीदवार बलवंत राजपूत बाज़ी मार लेते.
कहते हैं कि आप कितनी भी तैयारी कर लीजिए, थोड़ी चूक हो ही जाती है. भाजपा के साथ भी ऐसा ही हुआ. उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कांग्रेस के दो बागी विधायक भाजपा के प्रति जरूरत से ज्यादा वफादार हो जाएंगे. जब वोटिंग चल रही थी तो उस वक्त राज्यसभा का उम्मीदवार होने के नाते अमित शाह भी हॉल में ही मौजूद थे. कांग्रेस के दो बागी विधायकों – भोलाभाई गोहिल और राघवजी पटेल – ने अति उत्साह में बैलेट पेपर में एंट्री करने के बाद सबसे पहले भाजपा के पोलिंग एजेंट को अपना बैलेट पेपर दिखा दिया. ये दोनों विधायक सीधे अमित शाह को आश्वस्त कराना चाहते थे कि उन्होंने अपनी पार्टी से बगावत कर अपना वोट उन्हें ही दिया है.
इस बात की तैयारी तो भाजपा ने भी नहीं की थी. कांग्रेस के पोलिंग एजेंट शक्ति सिंह गोहिल ने मौका नहीं गंवाया और तुरंत ही यह बात लिखित तौर पर चुनाव आयोग को पहुंचा दी. ये राज्यसभा का चुनाव आज की सियासत के दो मैनजमेंट गुरुओं के बीच माना जा रहा था. अमित शाह और अहमद पटेल दोनों ही ने ही इसे अपनी-अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था. जब अहमद पटेल तक ये बात पहुंची तो उन्होंने गांधीनगर से लेकर दिल्ली तक तैयारी शुरू की. हरियाणा और राजस्थान में इसी बिना पर कांग्रेस के विधायकों के वोट रद्द हुए थे. अब कांग्रेस के पास मुद्दा भी था और सबूत भी.
भाजपा कांग्रेस के इस प्लान बी से शाम पांच बजे तक अनजान थी. अमित शाह के करीबी बताते हैं कि उन्हें पूरा भरोसा था कि ये छोटी बात है और इसे गांधीनगर में ही मैनेज कर लिया जाएगा. लेकिन कांग्रेस ने सीधे दिल्ली में चुनाव आयोग में शिकायत कर दी. सबूत के तौर पर वोटिंग का वीडियो देखने को कहा. सुनी-सुनाई है कि जब गांधीनगर में अमित शाह को इसकी खबर मिली तो उन्होंने दिल्ली में मौजूद सभी मंत्रियों को फौरन चुनाव आयोग के दफ्तर जाने को कहा. केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली से लेकर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद समेत सात मंत्री एक साथ वहां पहुंच गए.
इधर कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक चल रही थी. सुनी-सुनाई ही है कि इसमें अहमद पटेल की तरफ से सीधे सोनिया गांधी को मैसेज भिजवाया गया. इसके बाद मीटिंग में सिर्फ इसी बात पर चर्चा हुई और पी चिदंबरम के साथ पांच नेताओं को चुनाव आयोग के दफ्तर भेज दिया गया. अब गांधीनगर से बात निकल चुकी थी और फैसला दिल्ली में होना था. अमित शाह किसी भी तरह कांग्रेस के दो बागी विधायकों के वोट खारिज़ होने से रोकना चाहते थे. इसलिए एक बार फिर दिल्ली में मंत्रियों को चुनाव आयोग के दफ्तर जाने को कहा गया. इस बार अरुण जेटली तो नहीं गए लेकिन रविशंकर प्रसाद तीन मंत्रियों के साथ फिर पहुंचे. इनकी मांग थी कि अगर उनका वोट खारिज हो तो उस कांग्रेस विधायक का भी वोट खारिज होना चाहिए जिसने अपना वोट पहले ही दिखा दिया था. ऐसा होने पर भी पटेल का हारना तय था.
जब चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर तीसरी बार केंद्रीय मंत्रियों से मिलने से इंकार कर दिया तो गांधीनगर में एक आखिरी कोशिश और हुई. इस बार काउंटिंग को सुबह तक रोकने की का प्रयास किया गया. भाजपा के कुछ नेताओं की राय थी कि अगर तब तक नतीजों की घोषणा नहीं हुई तो कोर्ट जाने का विकल्प बचा रहेगा. लेकिन रात एक बजे के बाद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने आपस में बात की और इस बार पीछे हटने में ही अपनी भलाई समझी. इस तरह अहमद पटेल ने आमने-सामने की लड़ाई में अमित शाह को हरा दिया.

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