नरेंद्र मोदी की रैली और गुजरात चुनाव की तारीख़ का पेंच?
इस पोस्ट को शेयर करें Facebook
इस पोस्ट को शेयर करें Twitter
साझा कीजि
इमेज कॉपी
गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके नरेंद्र मोदी अब प्रधानमंत्री बन चुके हैं. बीते तीस दिनों में वो चार बार गुजरात दौरे पर जा चुके हैं. सोमवार को वो फिर गुजरात में होंगे.
स्पष्ट है कि गुजरात में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं और मौजूदा हालातों को देखते हुए ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि बीजेपी के लिए इस बार रास्ता आसान नहीं होगा.
गुजरात सरकार का कार्यकाल इसी साल दिसंबर में ख़त्म होने वाला है. लेकिन चुनाव आयोग ने अब तक विधानसभा चुनावों के तारीखों की घोषणा नहीं की है.
कांग्रेस का आरोप है कि सोमवार को होनेवाले प्रधानमंत्री के दौरे की वजह से गुजरात चुनाव की तारीख़ें घोषित नहीं की गईं. ऐसा कहा जा रहा है कि पीएम नरेंद्र मोदी गांधीनगर के नज़दीक गुजरात गौरव महासम्मेलन में क़रीब सात लाख भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करने वाले हैं.
गुजरात गौरव यात्रा की शुरुआत एक अक्टूबर को की गई थी और इसमें बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं ने राज्य की 182 में से 149 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया है और क़रीब पांच हज़ार किलोमीटर की यात्रा की है.
इससे पहले कांग्रेस के पार्टी प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने बीबीसी से कहा था कि अगर मोदी की 16 अक्तूबर की रैली से पहले गुजरात में चुनाव की तारीख़ों का ऐलान नहीं होता है तो कांग्रेस चुनाव आयोग का दरवाज़ा खटखटाएगी.
शेरगिल का कहना था कि सरकार को अहसास है कि दलित, युवा, किसान और कारोबारी उससे नाराज़ हैं और इसलिए वो कोशिश कर सकती है कि इस रैली में लुभावने वादे किए जाएं.
“अगर चुनावों के तारीख की घोषणा हो जाती है तो आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी, जिसके बाद वो ऐसा नहीं कर सकेंगे.”
आचार संहिता लगी तो संभल कर बोलना होगा
एक बार चुनाव आयोग तारीख़ों का एलान कर देता है तो राज्य में चुनाव के मद्देनज़र आचार संहिता लग जाती है. जिसके बाद,
मंत्री चुनाव प्रचार के लिए सरकारी दौरे नहीं कर सकते. चुनाव के काम में सरकारी मशीनरी और कर्मचारियों का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते.
मंत्री और बाक़ी अधिकारी विकास के लिए मिले पैसे से कोई ग्रांट या भुगतान नहीं कर सकते. साथ ही ऐसे किसी भुगतान की घोषणा या वादा भी नहीं कर सकते.
किसी नई योजना का शिलान्यास नहीं कर सकते.
सड़क बनाने, पीने का पानी मुहैया कराने या ऐसी ही कोई और सहूलियत देने का वादा नहीं कर सकते.
सरकार और सरकार के पैसे से चलने वाली संस्थाओं में ऐसी कोई नई नियुक्ति नहीं कर सकते, जिसका इस्तेमाल पार्टी के वोट बढ़ाने में किया जा सके.
कांग्रेस के आरोप का खंडन
बीजेपी ने चुनाव आयोग पर दबाव में काम करने के कांग्रेस के आरोप को खारिज कर दिया है. बीते शुक्रवार मीडिया से बात करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी और क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस के सवाल उठाने के बाद उन्होंने पिछले दो विधानसभा चुनावों की तारीख़ें निकलवाईं जिसमें सामने आया कि उन मौकों पर भी हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव के बीच चुनावों में तक़रीबन एक महीने का फ़ासला था.
2007 में हिमाचल प्रदेश का चुनाव का डेट था 20 अक्तूबर 2007 और गुजरात का था 21 नवंबर 2007. 2012 में गुजरात के चुनाव का पहला फ़ेज़ था 17 नवंबर 2012 और हिमाचल प्रदेश का था 10 अक्तूबर 2012.अब 07 और 12 में देश में किसकी सरकार थी, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है.
दूसरे हलकों से भी उठ रहे हैं सवाल
चुनाव आयोग के फ़ैसले पर इसलिए भी सवाल उठाए जा रहे है क्योंकि अब तक, एक ही समय या 6 महीने के भीतर चुनाव में जा रहे राज्यों की चुनावी तारीख़ों का एलान एक साथ कर दिया जाता था.
एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने न्यूज़ वेबसाइट ‘द वायर’ को बताया था कि “गुजरात के चुनाव की तारीख़ का एलान नहीं करके, चुनाव आयोग ने अपनी गरिमा को भंग कर दिया है.”
मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त अचल कुमार जोती ने कहा कि राज्य में 46 दिन से ज़्यादा समय तक आचार संहिता न लगी रहे, इसके लिए गुजरात की तारीख़ अभी नहीं बताई गई. यह घोषणा जल्दी ही की जाएगी.