विभिन्न सरकारी सुविधाओं और सेवाओं के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य बनाए जाने के सरकार के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बहस शुरू हो गई है। बुधवार को पहले दिन की सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की तरफ से वकील श्याम दीवान ने अपनी दलीलें रखी। उन्होंने कहा, आधार एक ‘इलेक्ट्रॉनिक पट्टे’ की तरह है। जिससे किसी की हर गतिविधि पर नजर रखी जा सकती है। सरकार किसी भी शख्स को उसके 12 अंक वाले विशिष्ट पहचान नंबर को बंद करके ‘बर्बाद’ कर सकती है।
दीवान ने दलील दी कि हर सेवा एवं सुविधा के लिए आधार को अनिवार्य बनाया जाना नागरिकों के अधिकारों की हत्या करने जैसा है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए के सीकरी, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण की संविधान पीठ मामले में सुनवाई कर रही है।
हालांकि पीठ ने श्याम दीवान उस दलील पर एतराज जताया, जिसमें उन्होंने कहा कि सरकार यह नहीं कह सकती कि उसे स्कूल, बच्चों और कल्याणकारी योजनाओं के वास्तविक लाभार्थियों का पता लगाने और इस मद में होने वाले खर्च के असल प्राप्तकर्ताओं का सत्यापन करने के लिए आधार की आवश्यकता है।
2016 से पहले एकत्रित किए गए बायोमैट्रिक डाटा का क्या होगा
यह तर्क जायज है। पीठ ने पूछा, आधार एक्ट, 2016 से पहले एकत्रित किए गए बायोमैट्रिक डाटा का क्या होगा। अगर आधार की वैधता को चुनौती देने की याचिका अपने मकसद में सफल हो जाती है तो क्या इसे नष्ट कर दिया जाएगा।
इस पर याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील की शुरुआत करने वाले दीवान ने कहा कि एक ‘मार्केटिंग युक्ति’ के जरिये सरकार ने एक कम समझ में आने वाला कार्यक्रम शुरू कर दिया। यह प्रत्येक भारतवासी पर एक इलेक्ट्रॉनिक पट्टा डालने के लिए है। यह पट्टा एक केंद्रीय डाटाबेस से जुड़ा है, जिसे किसी नागरिक के जीवन की हर गतिविधि पर नजर रखने के लिए तैयार किया गया है।
यह रिकॉर्ड सरकार को लोगों का प्रोफाइल तैयार करने, उनकी गतिविधि पर नजर रखने, उनकी आदतों का आकलन करने और धीरे-धीरे उनके व्यवहार को प्रभावित करने में मदद करेगा। कुछ समय बाद, यह प्रोफाइल सरकार को असंतोष को दबाने और राजनीतिक निर्णय लेने के लिए प्रभावित करने में मददगार होगा।