बिलासपुर। नगरीय निकाय चुनाव के करीब आते ही चुनावी सरगर्मी तेज हो गई है। वार्ड के नेता अब गली मोहल्ले से लेकर चौक-चौराहे व चाय की दुकानों में सक्रिय हो गए हैं। ये सक्रियता किसी की टिकट के लिए है, तो कोई जनता के बीच एक बार फिर से पार्टी व अपनी संभावना तलाश रहा है
दरअसल, निकाय आरक्षण के बाद वार्ड नेताओं के सामने एक बार फिर आगामी चुनाव में जनता का विश्वास जीतने की चुनौती है। समीकरण बदले हुए हैं। राज्य व शहर सत्ता में काँग्रेस का कब्जा है। बीजेपी के सामने निगम सत्ता को बचाये रखने की चुनौती है। ऐसे में दोनों ही प्रमुख दल के पार्षद, महापौर, वार्ड नेता इसके लिए गली- मोहल्लों, चौक- चौराहों में जनता के बीच जाकर उनका नब्ज टटोल रहे हैं और पार्टी के पक्ष में माहौल बना रहे हैं।
सत्ता दल काँग्रेस हो या फिर विपक्षी दल भाजपा दोनों ही पार्टियां इसे लेकर एक राह में दिख रहीं हैं। काँग्रेस के नेता जहाँ सरकार के काम के बहाने जनता के बीच अपनी संभावना देख रहे हैं व जनता का समर्थन मिलने का दावा कर रहे हैं, वहीं भाजपा, सरकार की नाकामियों व स्थानीय मुद्दों को लेकर जनता का विश्वास हासिल करने में लगी है। इन सब में खास बात ये है कि वार्ड नेता भी इसी बहाने अपनी दावेदारी की संभावना तलाश रहे हैं और जनता का रुख भांप रहे हैं।
पार्टीयों ने भी साफ कर दिया है, कि टिकट उसे मिलेगा जो पार्टी, जनता के विश्वास में खरा उतरेगा और जिताऊ होगा। ऐसे में वार्ड नेता टिकट मिलने से पहले ही सक्रिय हो गए हैं और पार्टी के बहाने अपनी भी संभावना तलाशने लगे हैं। बहरहाल, अब देखना होगा वार्ड नेताओं की सक्रियता का असर चुनाव व प्रत्याशी चयन में कितना होता है, पार्टी किसे मौका देती है।