Sunday, December 22, 2024
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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट: डिवीजन बेंच का ऐतिहासिक फैसला, नवा रायपुर परियोजना के लिए किसानों की सहमति अनिवार्य…

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित नवा रायपुर प्रोजेक्ट के लिए जमीन अधिग्रहण को लेकर एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए किसानों के हित में निर्णय लिया है। कोर्ट ने कहा है कि नवा रायपुर विकास प्राधिकरण (एनआरडीए) को भूमि अधिग्रहण के लिए नए कानून के तहत किसानों से पुनः समझौता करना होगा। अब 75 प्रतिशत भूमि स्वामी किसानों की सहमति के बिना जमीन अधिग्रहण संभव नहीं होगा। यह फैसला न केवल किसानों के अधिकारों को संरक्षित करता है, बल्कि नवा रायपुर परियोजना की दिशा और गति को भी प्रभावित कर सकता है।

नवा रायपुर परियोजना: महत्व और चुनौती

नवा रायपुर योजना छत्तीसगढ़ सरकार की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जो राज्य के विकास को गति देने के लिए बनाई गई थी। इस परियोजना के तहत नया राजधानी शहर विकसित किया जाना था, जिसके लिए बड़े पैमाने पर किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा था। हालांकि, इस अधिग्रहण प्रक्रिया में शुरू से ही विवाद रहा है। कई किसानों ने अपनी जमीन देने से इनकार किया था और सरकारी मुआवजे से भी असंतुष्ट थे।

हाईकोर्ट का फैसला: किसानों के अधिकारों की जीत

हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने किसानों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि एनआरडीए को भूमि अधिग्रहण के लिए नए कानून के प्रावधानों का पालन करना होगा। कोर्ट के अनुसार, भूमि अधिग्रहण के लिए 2013 में पारित नए कानून के तहत 75 प्रतिशत विस्थापित हो रहे किसानों की सहमति अनिवार्य है। यदि इतनी संख्या में किसान सहमत नहीं होते, तो सरकार परियोजना को आगे नहीं बढ़ा सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि पुराने भू अर्जन अधिनियम के तहत शुरू की गई प्रक्रियाओं पर भी नए कानून का प्रभाव पड़ेगा। धारा 6 का प्रकाशन 1 जनवरी 2014 से पहले किया गया था, इसलिए भू अर्जन अवार्ड एक वर्ष के भीतर ही करना था। इस समय सीमा के बाद किया गया भू अर्जन अवार्ड शून्य माना जाएगा। इस आदेश के बाद एनआरडीए को किसानों के साथ नए सिरे से बातचीत करनी होगी।

नवा रायपुर परियोजना की दिशा में नई चुनौतियां

इस फैसले के बाद नवा रायपुर परियोजना की प्रगति पर सवाल खड़े हो गए हैं। कोर्ट के आदेश के तहत नए सिरे से प्रक्रिया प्रारंभ होने से जमीन अधिग्रहण में विलंब होने की संभावना है। इस देरी से परियोजना की लागत में वृद्धि हो सकती है, जिससे सरकार को वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा, किसानों से सहमति प्राप्त करना भी एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया हो सकती है, क्योंकि कई किसान पहले ही अपने हितों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में यदि किसानों की सहमति नहीं मिलती है, तो परियोजना के रद्द होने या उसके आकार में बदलाव की भी संभावना बढ़ सकती है।

सरकार और किसानों के बीच संवाद की आवश्यकता

अब सरकार और एनआरडीए को कोर्ट के आदेश के तहत किसानों के साथ बैठकर समझौता करना होगा। यह प्रक्रिया पारदर्शिता और किसानों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए करनी होगी, ताकि भविष्य में इस तरह के विवाद फिर से न उठें। सरकार को यह समझना होगा कि बिना किसानों की सहमति के कोई भी परियोजना सफल नहीं हो सकती। ऐसे में एक संतुलित और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक होगा।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का यह फैसला केवल कानूनी दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह किसानों के अधिकारों की एक बड़ी जीत भी है। यह फैसला यह संदेश देता है कि विकास के नाम पर किसी के भी अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता। सरकार और एनआरडीए के लिए यह समय है कि वे किसानों के साथ एक समन्वय स्थापित करें और उनकी सहमति से आगे की योजना बनाएं। नवा रायपुर परियोजना की सफलता अब इस पर निर्भर करती है कि सरकार किस प्रकार से किसानों के साथ समझौता करती है और उनके हितों की रक्षा करती है।

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