बिलासपुर। पुलिस बल का कार्य समाज की रक्षा करना और कानून का पालन सुनिश्चित करना है, लेकिन जब वही अधिकारी अपराध में शामिल होते हैं, तो यह समाज के विश्वास पर गहरा आघात पहुंचाता है। हाल ही में बिलासपुर रेलवे स्टेशन पर गांजा तस्करी के मामले में जीआरपी (Government Railway Police) के चार आरक्षकों की संलिप्तता सामने आई, जिसके बाद उन्हें उनके पद से बर्खास्त कर दिया गया। यह घटना सुरक्षा बलों की विश्वसनीयता और जिम्मेदारी पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
पिछले महीने, बिलासपुर रेलवे स्टेशन के नागपुर छोर स्थित शौचालय के पास जीआरपी ने दो तस्करों को पकड़ा था, जिनके पास से 10 किलो गांजा बरामद हुआ था। तस्करों की पहचान जबलपुर निवासी योगेश सौंधिया और उत्तर प्रदेश के बांदा निवासी रोहित द्विवेदी के रूप में हुई थी। इस मामले की जांच के दौरान यह चौंकाने वाली जानकारी सामने आई कि जीआरपी रायपुर इकाई में तैनात चार आरक्षक—सौरभ नागवंशी, मन्नू प्रजापति, संतोष राठौर, और लक्ष्मण गाईन—तस्करों के साथ सीधे तौर पर संलिप्त थे।
रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार तस्करों से पूछताछ के बाद यह खुलासा हुआ कि ये आरक्षक तस्करी के नेटवर्क का हिस्सा थे। इन आरक्षकों ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए तस्करों से गांजा खरीदा और फिर उसे आगे बेचकर नगद और ऑनलाइन माध्यम से अपने खातों में पैसे जमा करवाए। इस प्रकार न केवल उन्होंने कानून का उल्लंघन किया, बल्कि अपनी जिम्मेदारियों के विपरीत अपराध में भी सीधे तौर पर भागीदार बने।
इस मामले की जांच रेल उप पुलिस अधीक्षक एसएन अख्तर द्वारा की गई। जांच के दौरान स्पष्ट हुआ कि ये आरक्षक न केवल अपराधियों से जुड़े थे, बल्कि स्वयं भी अपराध में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। यह बात साबित हो गई कि चारों आरक्षकों ने तस्करी के माध्यम से अवैध लाभ कमाए।
29 अक्टूबर को चारों आरक्षकों को गिरफ्तार कर न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया गया था। जांच में दोषी पाए जाने के बाद रेल एसपी जेआर ठाकुर ने बुधवार को इन आरक्षकों को बर्खास्त कर दिया। यह कदम पुलिस विभाग की साख को बचाने के लिए आवश्यक था, लेकिन यह घटना विभाग के भीतर फैली भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग की गंभीर स्थिति को उजागर करती है।
इस प्रकार की घटनाएं कानून व्यवस्था में विश्वास को कमजोर करती हैं। जब सुरक्षा बलों के लोग ही तस्करी जैसे अपराधों में लिप्त पाए जाते हैं, तो यह समाज के लिए चिंता का विषय बन जाता है। यह घटना पुलिस बलों में आंतरिक अनुशासन और ईमानदारी की आवश्यकता पर जोर देती है।
जीआरपी जैसी महत्वपूर्ण इकाइयों में भ्रष्टाचार का यह मामला यह स्पष्ट करता है कि सिर्फ कानून लागू करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि कानून लागू करने वालों पर भी कड़ी नजर रखने की आवश्यकता है।
जीआरपी के चार आरक्षकों की बर्खास्तगी से यह संदेश जाता है कि भ्रष्टाचार और कर्तव्यहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी, चाहे वह किसी भी स्तर पर हो। समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिनके कंधों पर होती है, उनका भ्रष्टाचार में लिप्त होना समाज के लिए अत्यधिक घातक साबित हो सकता है। यह घटना इस ओर इशारा करती है कि कानून और न्याय की प्रक्रिया में पारदर्शिता और ईमानदारी को बनाए रखने के लिए आवश्यक सुधार किए जाने चाहिए।
इस घटना ने यह सिद्ध कर दिया है कि तस्करी और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि पुलिस बल की साख और कानून व्यवस्था का सम्मान बरकरार रह सके।