Wednesday, December 11, 2024
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52 एकड़ आदिवासियों की जमीन पर गैर-आदिवासियों का कब्जा, महावीर कोल कंपनी के नाम पर है रजिस्ट्री, प्रशासन पर मिलीभगत का आरोप…

बिलासपुर जिले के कलारतराई गांव के बांकीघाट क्षेत्र में अवैध उत्खन्न की गतिविधियाँ पिछले कुछ समय से चर्चा का विषय बनी हुई हैं। यहाँ के गोयल क्रेशर द्वारा अवैध रूप से पत्थर और मुरुम का खनन हो रहा है, जिससे पहाड़ों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। स्थानीय ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार शिकायतें की जा रही हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा। इस पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर खनिज विभाग ने इस खनन के लिए अनुमति कैसे दी और क्यों प्रशासन इस अवैध गतिविधि पर रोक लगाने में विफल रहा है?

ग्रामीणों का कहना है कि इस अवैध उत्खन्न के पीछे विभागीय अधिकारियों और क्रेशर मालिकों के बीच मिलीभगत हो सकती है। ग्राम पंचायत के सरपंच द्वारा भी शिकायत की गई थी, लेकिन प्रशासन की ओर से अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। ग्रामीणों के अनुसार, प्रतिदिन पहाड़ों से हजारों ट्रक मुरुम और पत्थर निकाले जा रहे हैं और महावीर कोलवाशरी के रेलवे साइडिंग तक पहुँचाए जा रहे हैं। यह स्पष्ट करता है कि यहाँ बड़े पैमाने पर अवैध उत्खन्न किया जा रहा है, जिससे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि सरकारी राजस्व की भी भारी हानि हो रही है।

इस समस्या के साथ-साथ आदिवासी परिवारों की जमीन के अवैध कब्जे का मामला भी सामने आया है। ग्राम पंचायत खरगहनी में 52 एकड़ आदिवासी जमीन गैर-आदिवासी लोगों के नाम पर बेच दी गई है, जिसे महावीर कोल कंपनी के नाम पर रजिस्ट्री कर दिया गया। आदिवासी समुदाय के लोग इसे धोखाधड़ी और छल मान रहे हैं और इसकी गहराई से जांच की मांग कर रहे हैं। उनका आरोप है कि प्रशासन ने इस मामले में भी कोई कार्रवाई नहीं की है, जिससे उनके साथ अन्याय हुआ है।

अवैध उत्खन्न के कारण पर्यावरण को हो रहे नुकसान पर भी गंभीर चिंताएँ उठ रही हैं। पहाड़ों का तेजी से खत्म होना क्षेत्र के पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ रहा है। अगर समय रहते इस पर रोक नहीं लगाई गई, तो आने वाले समय में यहाँ के पहाड़ सिर्फ इतिहास के पन्नों में ही मिलेंगे। यह न सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा होगी, बल्कि स्थानीय ग्रामीणों के जीवन और आजीविका पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।

साथ ही, आदिवासी समुदाय की जमीन पर हो रहे अतिक्रमण ने सामाजिक और कानूनी सवाल खड़े कर दिए हैं। आदिवासियों की जमीन गैर-आदिवासी लोगों के नाम पर कैसे चढ़ी, इसकी पूरी तरह से जांच होनी चाहिए। इस प्रकार की घटनाएँ न सिर्फ उनके अधिकारों का हनन हैं, बल्कि सामाजिक असमानता और आर्थिक अन्याय की ओर भी इशारा करती हैं।

ग्रामीण और सामाजिक कार्यकर्ता इस मामले को लेकर जिला प्रशासन से न्याय की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि प्रशासन ने उचित और समय पर कार्रवाई नहीं की, तो वे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने पर मजबूर हो जाएंगे। अवैध उत्खन्न से करोड़ों रुपये की राजस्व चोरी हो रही है और पहाड़ों को नष्ट किया जा रहा है, जिसे रोकने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है।

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