बिलासपुर जिले के रतनपुर में ठगी का शिकार हुई महिलाओं ने कलेक्टर कार्यालय में गुहार लगाई है, जिसमें उन्होंने कोरबा कलेक्टर द्वारा जारी आदेश का हवाला देते हुए ऋण वसूली में राहत की मांग की है। ये महिलाएं एक बार ठगी का शिकार हो चुकी हैं और अब उन पर बैंकों द्वारा लोन की किस्त चुकाने का भारी दबाव है।
महिलाओं की आर्थिक स्थिति पहले से ही अत्यंत नाजुक है, क्योंकि उन्होंने एलोरा नामक एक कंपनी में निवेश किया था। उन्होंने बैंकों से लोन लेकर इस कंपनी में अपनी पूंजी लगाई, उम्मीद थी कि इससे उन्हें आर्थिक लाभ होगा। लेकिन दुर्भाग्यवश, यह कंपनी धोखाधड़ी में लिप्त निकली और उनका सारा निवेश डूब गया। इस घटनाक्रम ने न केवल महिलाओं की आर्थिक स्थिति को तहस-नहस किया, बल्कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से भी काफी परेशान किया है।
कोरबा कलेक्टर ने 28 नवंबर 2024 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें महिलाओं से ऋण की वसूली पर रोक लगाने का निर्देश दिया गया था। यह आदेश उन महिलाओं को राहत देने के उद्देश्य से जारी किया गया था, जो एलोरा कंपनी द्वारा ठगी का शिकार हुई थीं। आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि तब तक ऋण वसूली पर रोक रहेगी जब तक कोई और निर्देश जारी न हो। बावजूद इसके, कई बैंकों ने इस आदेश को अनदेखा कर दिया है और महिलाओं पर ऋण वसूली का दबाव लगातार बना हुआ है।
ये महिलाएं विजन बैंक, एलएनटी बैंक, स्वतंत्र बैंक, अन्नपूर्णा बैंक और इंसाफ बैंक जैसे बैंकों से लोन लेकर इस निवेश में फंसी थीं। अब जब कंपनी ठगी का शिकार बनाकर गायब हो गई है, महिलाएं अपने ऋण की अदायगी करने में असमर्थ हो चुकी हैं। इस कारण कई महिलाएं भारी मानसिक तनाव से गुजर रही हैं। रतनपुर और अन्य क्षेत्रों के बैंक अधिकारी इस मामले को गंभीरता से न लेते हुए ऋण की किस्त वसूलने के लिए महिलाओं पर दबाव डाल रहे हैं।
महिलाओं द्वारा बार-बार गुहार लगाने के बावजूद बैंक अधिकारियों द्वारा कलेक्टर के आदेश की अवहेलना करना और उनसे किस्तें वसूलने का दबाव बनाना न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी निंदनीय है। ठगी का शिकार हो चुकी इन महिलाओं को राहत की सख्त जरूरत है, और प्रशासन का यह दायित्व है कि वे उन पर किसी भी प्रकार के आर्थिक बोझ को बढ़ने से रोकें।
इन महिलाओं की मांगें पूरी तरह जायज हैं। ठगी का शिकार होकर उनकी पहले से ही आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर हो चुकी है। अब यदि उन्हें बैंकों द्वारा ऋण की किस्तें चुकाने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह उनकी परेशानियों को और बढ़ा देगा। बैंकों और प्रशासन दोनों को महिलाओं की इस संकटपूर्ण स्थिति को ध्यान में रखते हुए कलेक्टर के आदेश का सख्ती से पालन करना चाहिए। उन्हें कुछ समय के लिए ऋण चुकाने में राहत दी जानी चाहिए, ताकि वे अपने जीवन को दोबारा पटरी पर ला सकें।
यह समय है जब स्थानीय प्रशासन, बैंक अधिकारी और सरकार ठगी के शिकार निवेशकों को राहत देने के लिए ठोस कदम उठाएं। साथ ही, उन कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए जो इस तरह की धोखाधड़ी में शामिल होती हैं। अगर इन मामलों पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया, तो भविष्य में भी ऐसी घटनाएं होती रहेंगी, और इससे आम जनता का बैंकों और प्रशासन पर से विश्वास उठ सकता है।
अंत में, इस गंभीर स्थिति में महिलाओं को मानसिक और आर्थिक राहत प्रदान करने के लिए उचित कार्यवाही करना आवश्यक है। ठगी का शिकार होने के बाद उनकी परेशानियों को समझते हुए उन्हें राहत दिलाने के लिए प्रशासन और बैंकों को मिलकर काम करना चाहिए।