छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला का वह क्षेत्र जहां प्रकृति का आशीर्वाद और खनिज संपदा दोनों भरपूर मात्रा में मौजूद हैं। लेकिन इस प्राकृतिक धरोहर पर उद्योगों की बढ़ती गतिविधियों और पर्यावरणीय स्वीकृति प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। स्थानीय समुदाय और पर्यावरण प्रेमी आरोप लगा रहे हैं कि पर्यावरण संरक्षण मण्डल (EPCB) उद्योगपतियों को अनुचित लाभ पहुंचा रहा है, जिससे क्षेत्रीय पर्यावरण और स्थानीय निवासियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
खदानों का विस्तार और बढ़ता विवाद
विशेषकर, सारडा एनर्जी एंड मिनरल्स लिमिटेड (SEML) द्वारा तमनार क्षेत्र में करवाही ओपन कास्ट कोल ब्लॉक (गारे पाल्मा IV/7) की उत्पादन क्षमता बढ़ाने का प्रस्ताव इस विवाद के केंद्र में है। कंपनी की योजना है कि खदान की उत्पादन क्षमता 1.2 मिलियन टन प्रति वर्ष (MTPA) से बढ़ाकर 1.8 MTPA की जाए। इससे न केवल पर्यावरणीय असंतुलन की संभावना है, बल्कि करवाही, खमरिया, सराईटोला, ढोलनारा और बजरमुड़ा जैसे आदिवासी बाहुल्य गांव भी प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे।
पेसा कानून की अनदेखी
यह क्षेत्र पेसा (पंचायतों (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम) कानून के दायरे में आता है, जो आदिवासियों को उनके संसाधनों और आजीविका की रक्षा के लिए विशेष अधिकार प्रदान करता है। लेकिन आरोप हैं कि प्रशासन ने इन प्रावधानों की अनदेखी कर उद्योगों को प्राथमिकता दी है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि जनसुनवाई जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया केवल औपचारिकता बनकर रह गई है, जहां उनकी आपत्तियों और चिंताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है।
पर्यावरणीय और स्थानीय समस्याएं
रायगढ़ जिले में उद्योगों की बढ़ती संख्या से पर्यावरण को गंभीर क्षति हो रही है। कोयला खदानों, पावर प्लांट्स, और स्पंज आयरन कारखानों की वजह से वायु, जल, और भूमि प्रदूषण बढ़ा है। इसका असर न केवल वन्यजीवों पर, बल्कि मानव जीवन पर भी पड़ रहा है।
स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि खदानों और उद्योगों के कारण उनकी कृषि भूमि बंजर हो रही है, जल स्रोत दूषित हो रहे हैं, और वनों का तेजी से क्षरण हो रहा है। इसके अलावा, औद्योगिक प्रदूषण से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ी हैं।
पारदर्शिता की कमी और जन आक्रोश
पर्यावरण प्रेमियों और ग्रामीणों ने पर्यावरणीय स्वीकृति प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि जनसुनवाई की प्रक्रिया को प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है। दावा-आपत्तियां मंगाकर औपचारिकता पूरी की जा रही है, जबकि वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं किया जा रहा है।
इससे शासन-प्रशासन के प्रति लोगों में गुस्सा और अविश्वास बढ़ता जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण मण्डल को उद्योगों से पहले स्थानीय समुदायों के अधिकारों और पर्यावरण की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए।
पर्यावरण प्रेमियों की मांग
इस विवाद के बीच, ग्रामीण और पर्यावरण प्रेमी अपनी मांगों को लेकर एकजुट हैं। उन्होंने प्रशासन से निम्नलिखित कदम उठाने की अपील की है:
- पारदर्शी पर्यावरणीय स्वीकृति प्रक्रिया: सभी जनसुनवाई और पर्यावरणीय मूल्यांकन में स्थानीय समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
- पेसा कानून का पालन: आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून का सख्ती से पालन किया जाए।
- पर्यावरणीय क्षति का आकलन: उद्योगों के संचालन से हो रहे पर्यावरणीय नुकसान का विस्तृत अध्ययन किया जाए और प्रभाव को कम करने के उपाय लागू किए जाएं।
- स्थानीय विकास पर ध्यान: उद्योगों से प्राप्त लाभ का उपयोग क्षेत्र के विकास और रोजगार सृजन में किया जाए।
प्रशासन और उद्योगों की चुप्पी
सारडा एनर्जी एंड मिनरल्स लिमिटेड (SEML) से इस मामले पर प्रतिक्रिया के प्रयास किए गए, लेकिन समाचार लिखे जाने तक कोई उत्तर नहीं मिला। प्रशासन की ओर से भी अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिससे ग्रामीणों का आक्रोश और बढ़ रहा है।
समाधान की आवश्यकता
रायगढ़ में पर्यावरणीय स्वीकृतियों और औद्योगिक विस्तार को लेकर उठ रहे सवाल एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करते हैं। यह न केवल पर्यावरण की रक्षा, बल्कि आदिवासी समुदायों के अधिकारों और जनहित की सुरक्षा का भी मामला है।
सरकार और प्रशासन को इन चिंताओं को गंभीरता से लेते हुए पारदर्शी और न्यायपूर्ण प्रक्रियाओं को लागू करना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण और उद्योगों के संतुलन को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि सभी पक्षों की बात सुनी जाए और सामूहिक हित में निर्णय लिया जाए।
रायगढ़ जिले का यह मुद्दा केवल स्थानीय विवाद नहीं है, बल्कि यह पर्यावरणीय न्याय, आदिवासी अधिकारों और सतत विकास के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का परीक्षण है। यदि प्रशासन और उद्योग समय रहते जिम्मेदारी नहीं लेते, तो यह न केवल क्षेत्रीय पर्यावरण, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचा सकता है।