बिलासपुर: नगर निगम चुनाव के मद्देनजर शहर में जाति प्रमाणपत्र और नामांकन को लेकर विवाद गरमाता जा रहा है। हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी पद्मजा (उर्फ पूजा विधानी) के जाति प्रमाणपत्र की वैधता पर सवाल उठाए गए हैं। आरोप है कि उन्होंने पिछड़ी जाति का प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर चुनावी प्रक्रिया में भाग लिया, जबकि वे सामान्य जाति से संबंध रखती हैं।
कांग्रेस कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव और कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी प्रमोद नायक ने दावा किया है कि पद्मजा का पिछड़ा वर्ग प्रमाणपत्र गलत तरीके से हासिल किया गया है। आरोपों के अनुसार, वे तेलंगाना की मूल निवासी हैं और उनकी जाति प्रमाणपत्र की वैधता संदिग्ध है। यह भी कहा जा रहा है कि उनके पिता बिलासपुर रेलवे में ड्राइवर के पद पर कार्यरत थे और वे सामान्य जाति से संबंध रखते थे। ऐसे में पिछड़ी जाति के प्रमाणपत्र का उपयोग कर चुनाव लड़ना नियमों का उल्लंघन हो सकता है।
कांग्रेस ने जिला निर्वाचन अधिकारी से मांग की है कि पद्मजा के नामांकन की जांच की जाए और अगर जाति प्रमाणपत्र फर्जी पाया जाता है, तो उनका नामांकन निरस्त किया जाए। एक पक्ष का कहना है कि जाति प्रमाणपत्र की आड़ में आरक्षित सीटों पर अनधिकृत रूप से चुनाव लड़ना सामाजिक न्याय के खिलाफ है।
प्रकरण को लेकर प्रमोद नायक ने उच्च अधिकारियों से शिकायत दर्ज कराई है। यह भी कहा जा रहा है कि अगर उचित कार्रवाई नहीं की गई, तो मामला न्यायालय में ले जाया जाएगा। इस पूरे मामले में प्रशासन की भूमिका भी सवालों के घेरे में है, क्योंकि फर्जी प्रमाणपत्र के जरिए नामांकन दाखिल करना कानूनी अपराध की श्रेणी में आता है।
जिला निर्वाचन आयोग और स्थानीय प्रशासन पर दबाव बढ़ता जा रहा है कि वे इस मामले की निष्पक्ष जांच करें। अगर आरोप सही पाए जाते हैं, तो न केवल नामांकन रद्द होगा, बल्कि संबंधित अधिकारियों पर भी कड़ी कार्रवाई हो सकती है, जिन्होंने जाति प्रमाणपत्र जारी किया है। विधायक अटल श्रीवास्तव ने कहा है कि बहुत जल्द प्रमाण पत्र जारी करने वाले अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का आवेदन दिया जाएगा।
यह मामला न केवल चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि समाज के पिछड़े वर्गों में भी आक्रोश पैदा कर सकता है। ऐसे में प्रशासन को चाहिए कि वह जल्द से जल्द इस विवाद का हल निकाले और चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए।
बिलासपुर में जाति प्रमाणपत्र विवाद ने राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है। चुनाव आयोग के लिए यह एक परीक्षा की घड़ी है कि वह निष्पक्ष जांच कर जनता का विश्वास बनाए रखे। अगर फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर चुनाव लड़ने का आरोप सही पाया जाता है, तो यह न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ होगा, बल्कि समाज के पिछड़े वर्गों के अधिकारों का भी हनन होगा।