Friday, April 18, 2025
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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बिना मुहर वाले बाउंस चेक भी बन सकते हैं सज़ा का आधार!” ट्रायल कोर्ट के फैसले को ठहराया त्रुटिपूर्ण…

बिलासपुर।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए चेक बाउंस मामलों से जुड़े कानून की व्याख्या को नई दिशा दी है। न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि केवल बैंक रिटर्न मेमो में मुहर या हस्ताक्षर की कमी के कारण कोई मामला खारिज नहीं किया जा सकता, यदि अन्य साक्ष्य उपलब्ध हों और चेक बाउंस की पुष्टि हो।

यह मामला पूर्वा कंस्ट्रक्शन के मालिक मित्रभान साहू और तुलसी स्टील ट्रेडर्स के मालिक पुष्पेंद्र केशरवानी के बीच का है, जिसमें ₹67,640 और ₹1,70,600 के दो चेक बाउंस होने पर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत मामला दायर किया गया था।

निचली अदालत का फैसला पलटा

ट्रायल कोर्ट ने आरोपी मित्रभान साहू को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि बैंक रिटर्न मेमो पर अधिकृत मुहर नहीं है, और कोई बैंक अधिकारी गवाही में पेश नहीं हुआ। लेकिन हाईकोर्ट ने इस फैसले को “प्रक्रियात्मक त्रुटि” बताया और कहा कि रिटर्न मेमो में मुहर की कमी से आरोपी को बरी नहीं किया जा सकता।

हाईकोर्ट की अहम टिप्पणियाँ

जस्टिस व्यास ने कहा,

“धारा 139 के तहत यह मान्यता है कि चेक किसी वैध देनदारी के लिए जारी किया गया था। सिर्फ बैंक की मुहर न होना इस धारणा को खारिज नहीं करता।”

इसके अलावा, उन्होंने यह भी जोड़ा कि

“धारा 146 कोई निश्चित प्रारूप नहीं बताती है, और न ही यह रिटर्न मेमो बैंकर्स बुक एविडेंस एक्ट के तहत आता है। इसलिए इस तरह की प्रक्रियात्मक त्रुटियाँ मुकदमे की वैधता को प्रभावित नहीं करतीं।”

मामले की अगली सुनवाई

हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया है कि वह बैंक अधिकारी को गवाही के लिए बुलाकर यह पुष्टि करे कि चेक वास्तव में प्रस्तुत हुए थे और “अपर्याप्त निधि” के कारण बाउंस हुए। इसके लिए किसी नए नोटिस की आवश्यकता नहीं होगी। दोनों पक्षों को मई 2025 में ट्रायल कोर्ट में पेश होने को कहा गया है और नौ महीनों के भीतर सुनवाई पूरी करने के निर्देश दिए गए हैं।

कानूनी मिसालें जिनका उल्लेख हुआ:

  • गुनीत भसीन बनाम दिल्ली राज्य (दिल्ली HC)
  • मोहम्मद यूनुस मलिक बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (इलाहाबाद HC)
  • इंडिया सीमेंट्स इन्वेस्टमेंट सर्विसेज लिमिटेड बनाम टी. पी. नल्लूसामी (मद्रास HC)

क्यों है यह फैसला महत्वपूर्ण?

यह निर्णय उन मामलों में एक नयी कानूनी दृष्टि प्रदान करता है, जहाँ तकनीकी त्रुटियों का लाभ उठाकर आरोपी खुद को बचा लेते हैं। अब यह साफ हो गया है कि यदि अन्य आवश्यक साक्ष्य मौजूद हों, तो केवल रिटर्न मेमो की औपचारिकताओं की कमी से अभियोजन को खारिज नहीं किया जा सकता।

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