हाथरस कांड को लेकर कांग्रेस आक्रामक है। इस मुद्दे पर सीधे टकराव से बचने के लिए यूपी सरकार को आखिरकार पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी पीड़िता के परिवार से मिलने के लिए हाथरस जाने की इजाजत देनी पड़ी। पर कांग्रेस ने जिस तरह इस मुद्दे को उठाया है, उससे साफ है कि पार्टी तेवर बरकार रखेगी।
उत्तर प्रदेश के साथ यह मुद्दा बिहार विधानसभा और मध्य प्रदेश उपचुनावों में भी असर डालेगा। क्योंकि, इस मुद्दे के जरिए कांग्रेस भाजपा को दलित विरोधी के तौर पर पेश कर सकती है। साथ ही पार्टी को अपना परंपरागत वोट की वापसी की उम्मीद जगी है। दलित समाज में इस घटना को लेकर नाराजगी है। यही वजह है कि कांग्रेस कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती।
बिहार विधानसभा और मध्यप्रदेश उपचुनावों के बीच कांग्रेस इस मुद्दे पर भाजपा को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती। क्योंकि, बिहार की 38 आरक्षित सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाती है। वर्ष 2015 के चुनाव में राजद, कांग्रेस और जेडीयू ने एकसाथ चुनाव लड़ा था। इन चुनाव में राजद 14, जेडीयू 10 और कांग्रेस 5 सीट जीतने में सफल रही थी। भाजपा को भी पांच सीट मिली थी। पर इस बार सियासी तस्वीर और गठबंधन के सहयोगी बदल गए हैं।
इस बार जेडीयू और भाजपा एकसाथ चुनाव मैदान में हैं। बसपा भी रालोसपा के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में हैं। इसलिए, कांग्रेस हाथरस कांड को उठाकर भाजपा और जेडीयू के साथ बसपा को भी कटघरे में खड़ा करना चाहती है। क्योंकि, इस मामले को लेकर बसपा बहुत आक्रामक नहीं रही है। जबकि भाजपा और उत्तर प्रदेश सरकार बैकफुट पर है।
मध्य प्रदेश की 28 सीट पर होने वाले उपचुनावों में से 11 सीट आरक्षित हैं। वर्ष 2018 में हुए चुनाव में इनमें से कई आरक्षित सीट पर बसपा दूसरे नंबर पर रही थी। मप्र उपचुनाव कांग्रेस के लिए बेहद अहम है, क्योंकि इन चुनावों में जीत पार्टी की सत्ता में वापसी की राह बना सकती है। इसलिए, कांग्रेस उपचुनावों में दलित मतदाताओं को अपनी तरफ करना चाहती है।
उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस हाथरस कांड पर बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की चुप्पी का फायदा उठाना चाहती है। पार्टी पूरी मजबूती के साथ 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती है, इसलिए वह यूपी से जुड़े हर मुद्दे को उठाने में सबसे आगे रहती है।