दीपावली, जिसे हम प्रकाश का पर्व मानते हैं, अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक है। यह त्यौहार केवल घरों को दीपों से सजाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका गहरा संबंध हमारे आंतरिक और सामाजिक जीवन से भी है। हर वर्ष जब हम दीपावली मनाते हैं, तब यह पर्व हमें न केवल उल्लास और खुशी प्रदान करता है, बल्कि हमारी आंतरिक चेतना को जागृत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी होता है।
दीपावली की सबसे प्रमुख और प्रेरणादायक कहानियों में से एक **रामायण** से जुड़ी है। भगवान श्रीराम के 14 वर्षों के वनवास से लौटने पर अयोध्या में इस पर्व की शुरुआत हुई थी। रामायण की यह कहानी केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं है, बल्कि हमारे लिए प्रेम, करुणा, और सहानुभूति के अद्भुत आदर्श प्रस्तुत करती है।
जब भगवान श्रीराम अपने वनवास से लौटे, उन्होंने अपने जीवन में अनगिनत कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना किया था। वनवास के दौरान श्रीराम ने राक्षसराज रावण जैसे शक्तिशाली और अहंकारी शत्रु का सामना किया, जिसने उनके जीवन और परिवार को असीमित पीड़ा दी थी। परंतु ध्यान देने वाली बात यह है कि जब श्रीराम ने रावण को हराया, तो उन्होंने नफरत या बदले की भावना से नहीं, बल्कि धर्म और न्याय की रक्षा के लिए यह युद्ध किया।
श्रीराम की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने कभी भी व्यक्तिगत शत्रुता को अपने निर्णयों में स्थान नहीं दिया। रावण के पराजय के बाद भी, उन्होंने उसके अंतिम संस्कार के लिए पूरा सम्मान दिया और उसकी अच्छाइयों को स्वीकार किया। यह उनके व्यक्तित्व की महानता को दर्शाता है, जो हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन में किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत शत्रुता, घृणा या प्रतिशोध से दूर रहना चाहिए।
दीपावली का संदेश हमें यह बताता है कि हमारे समाज में प्रेम और करुणा का क्या महत्व है। रामायण के माध्यम से श्रीराम ने यह साबित किया कि प्रेम और सद्भावना न केवल व्यक्तिगत जीवन को बेहतर बनाते हैं, बल्कि समाज में भी शांति और सद्भाव बनाए रखने में सहायक होते हैं। जब श्रीराम अयोध्या लौटे, तो उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने दीप जलाए। इन दीपों का प्रकाश केवल अयोध्या नगरी को नहीं, बल्कि हर दिल को रोशन करने का प्रतीक था।
यह त्योहार हमें सिखाता है कि जिस प्रकार दीप अंधकार को दूर करता है, उसी प्रकार हमें अपने जीवन से नफरत और घृणा के अंधकार को दूर करना चाहिए। समाज में प्रेम, सहानुभूति और एकता की भावना को बढ़ावा देना ही असली दीपावली का संदेश है।
दीपावली का यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ या संघर्ष क्यों न हों, हमें नफरत और द्वेष से दूर रहकर अपने भीतर प्रेम और करुणा को स्थान देना चाहिए। घृणा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि वह हमारे जीवन को और भी अधिक कठिन बनाती है। रावण का अंत केवल उसकी बुराइयों का अंत था, और श्रीराम ने इसे प्रेम, करुणा और न्याय की भावना से अंजाम दिया। यह हमें यह सिखाता है कि हमें हमेशा बुराई से लड़ना चाहिए, परंतु बिना किसी व्यक्तिगत द्वेष के।
दीपावली केवल बाहरी रोशनी का त्यौहार नहीं है, बल्कि यह आंतरिक प्रकाश को जागृत करने का अवसर है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि जीवन में प्रकाश की ओर अग्रसर होने का मतलब केवल भौतिक समृद्धि से नहीं है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक संतुलन से भी है। जब हम प्रेम, करुणा, सहानुभूति और सद्भावना के दीप जलाते हैं, तभी समाज में वास्तविक शांति और सौहार्द्र का माहौल बनता है।
इस दीपावली, आइए हम सभी अपने भीतर के अंधकार को प्रेम और करुणा के प्रकाश से मिटाने का प्रयास करें। समाज में घृणा, द्वेष और संघर्ष की जगह प्रेम, शांति और एकता का दीप जलाएँ। यही दीपावली का सच्चा अर्थ और संदेश है।
Happy diwali