रायपुर। छत्तीसगढ़ में स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता पर खतरा मंडराता दिखाई दे रहा है। साप्ताहिक समाचार पत्र बुलंद छत्तीसगढ़ के संपादक मनोज पाण्डेय ने जल संसाधन विभाग में अनियमितताओं और ठेका शर्तों के उल्लंघन को उजागर करने के बाद गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने ठेकेदार अमित जायसवाल पर झूठे मामलों में फंसाने, धमकाने और जान से मारने की कोशिश का आरोप लगाते हुए प्रशासन से न्याय और सुरक्षा की गुहार लगाई है।
मनोज पाण्डेय ने 30 मई 2023 को जल संसाधन विभाग के प्रमुख अभियंता को निर्माण कार्यों में अनियमितताओं और ठेका शर्तों के उल्लंघन की शिकायत की थी। इस शिकायत के बाद उनके खिलाफ 2 जून 2023 को झूठी एफआईआर दर्ज करवाई गई। पुलिस ने बिना जांच किए उनकी गिरफ्तारी कर ली। पत्रकारिता की स्वतंत्रता और सच को सामने लाने का प्रयास करने पर उन्हें यह सजा झेलनी पड़ी।
मनोज पाण्डेय का आरोप है कि उन्हें पुलिस हिरासत और कोर्ट परिसर में ठेकेदार अमित जायसवाल द्वारा धमकियां दी गईं। ठेकेदार ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि उन्होंने उसके खिलाफ लिखना जारी रखा, तो उन्हें खत्म कर दिया जाएगा। यह आरोप न केवल गंभीर है बल्कि पत्रकारिता पर हो रहे हमलों को भी उजागर करता है।
पाण्डेय के खिलाफ ठेकेदार के प्रभाव में 28 नवंबर 2023 को लवन थाने में एक और झूठी एफआईआर दर्ज की गई। इसमें उन पर जातिसूचक अपशब्द कहने और 5 लाख रुपये मांगने का आरोप लगाया गया। इस मामले में उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जहां से उन्हें अग्रिम जमानत मिली।
मनोज पाण्डेय ने बताया कि उनके घर और मंदिर के आसपास संदिग्ध लोग देखे गए। 31 दिसंबर 2024 को ठेकेदार खुद उनके घर के पास आया और उन्हें बाहर बुलाने की कोशिश की। इस घटना के बाद वे डर के कारण कुछ समय के लिए रायपुर छोड़ने को मजबूर हो गए।
मनोज पाण्डेय के अनुसार, ठेकेदार अमित जायसवाल का आपराधिक इतिहास लंबा है। वह 17 मामलों में आरोपी है और 9 महीने जेल में रह चुका है। ऐसे व्यक्ति द्वारा वरिष्ठ पत्रकार को धमकाना, एक गंभीर मुद्दा है जो प्रशासन और न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है।
मनोज पाण्डेय ने ठेकेदार के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने प्रशासन से उनके और उनके परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है। पाण्डेय का कहना है कि ठेकेदार के प्रभाव और आपराधिक गतिविधियों के कारण उनकी जान-माल को गंभीर खतरा है।
यह मामला केवल एक पत्रकार पर हुए हमले का नहीं, बल्कि जल संसाधन विभाग में फैली अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले व्यक्ति को चुप कराने की कोशिश का है। प्रशासन और पुलिस की निष्पक्ष जांच इस प्रकरण के पीछे छिपे सच को उजागर कर सकती है।
मनोज पाण्डेय जैसे पत्रकार लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को मजबूती देते हैं। उनकी सुरक्षा और स्वतंत्रता सुनिश्चित करना न केवल प्रशासन की जिम्मेदारी है, बल्कि यह समाज के हर व्यक्ति की सुरक्षा का आश्वासन भी है। यह समय है कि प्रशासन इस मामले में तुरंत कार्रवाई करे और पत्रकारिता पर हो रहे हमलों पर रोक लगाए।