Saturday, April 19, 2025
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बिलासपुर कांग्रेस में आंतरिक कलह: जिला और शहर अध्यक्ष पर लगे गंभीर आरोप, क्या पार्टी नेतृत्व को उठाना चाहिए ठोस कदम!…

बिलासपुर: कांग्रेस पार्टी में गुटबाजी और आंतरिक असंतोष कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं त्रिलोक श्रीवास और तैयब हुसैन द्वारा लगाए गए आरोपों ने संगठन के भीतर की राजनीति को उजागर कर दिया है। दोनों नेताओं ने कांग्रेस के जिला अध्यक्ष और शहर अध्यक्ष पर गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें भाजपा की “बी टीम” के रूप में काम करने का आरोप लगाया है।

त्रिलोक श्रीवास, जो कि कांग्रेस के महापौर पद के दावेदार थे, और तैयब हुसैन, जो वार्ड पार्षद का टिकट मांग रहे थे, दोनों का टिकट काट दिया गया। इसी नाराजगी के चलते दोनों नेताओं ने पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं। इनका आरोप है कि कांग्रेस के जिला और शहर अध्यक्ष जानबूझकर उन नेताओं को टिकट से वंचित कर रहे हैं जो पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत कर सकते थे। उनका कहना है कि यह निर्णय पार्टी विरोधी मानसिकता का हिस्सा है और इससे कांग्रेस को नुकसान हो रहा है।

यह आरोप सामान्य असंतोष से कहीं ज्यादा गंभीर हैं। जब पार्टी के ही वरिष्ठ नेता अपने ही संगठन के प्रमुखों पर विपक्षी दल के एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाते हैं, तो इससे पार्टी के भीतर गहरे असंतोष का संकेत मिलता है। कांग्रेस पहले ही कई राज्यों में आंतरिक कलह और गुटबाजी की वजह से कमजोर हो चुकी है, और यदि ऐसे ही आरोप सामने आते रहे तो पार्टी की स्थिति और खराब हो सकती है।

जिला और शहर अध्यक्ष की भूमिका किसी भी राजनीतिक दल के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है। ये पदाधिकारी जिले में पार्टी की दशा और दिशा तय करते हैं—किस मुद्दे पर आंदोलन करना है, सरकार के किन फैसलों का विरोध करना है, और पार्टी कार्यकर्ताओं को कैसे एकजुट रखना है, यह सब इन्हीं की जिम्मेदारी होती है। अगर पार्टी के नेता ही नेतृत्व पर भरोसा खो रहे हैं, तो इससे कांग्रेस की साख को गहरा नुकसान हो सकता है।

बिलासपुर में कांग्रेस के प्रदर्शन को देखते हुए शीर्ष नेतृत्व को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए। पार्टी के प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को इन आरोपों की जांच करानी चाहिए और यदि आरोप सही साबित होते हैं, तो संगठन में आवश्यक बदलाव करने चाहिए। गुटबाजी और आंतरिक कलह किसी भी राजनीतिक दल के लिए घातक होती है, खासकर जब वह पहले से ही संघर्ष कर रहा हो।

अगर कांग्रेस नेतृत्व इस मुद्दे को अनदेखा करता है, तो इससे असंतोष और बढ़ सकता है और पार्टी कमजोर हो सकती है। इससे कांग्रेस के उन जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल भी टूटेगा, जो पार्टी के लिए वर्षों से मेहनत कर रहे हैं।

बिलासपुर कांग्रेस में उठा यह विवाद सिर्फ स्थानीय स्तर का मामला नहीं है, बल्कि यह पूरे प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति को दर्शाता है। जब पार्टी के ही नेता अपने ही संगठन पर भाजपा की बी टीम की तरह काम करने का आरोप लगाने लगें, तो यह पार्टी नेतृत्व के लिए एक गंभीर चेतावनी होनी चाहिए। अगर समय रहते कांग्रेस इस आंतरिक कलह को नहीं सुलझाती, तो आने वाले चुनावों में इसका भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

अब देखना यह होगा कि कांग्रेस के शीर्ष नेता इस विवाद को किस तरह हल करते हैं और पार्टी में गुटबाजी को रोकने के लिए क्या कदम उठाते हैं।

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