Monday, September 8, 2025
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पति ने मांगी पत्नी की कॉल डिटेल, हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर कहा– विवाह का अर्थ निजता के अधिकार का हनन नहीं…

बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि पति-पत्नी के बीच वैवाहिक संबंध होने के बावजूद कोई भी पति पत्नी की निजता का उल्लंघन नहीं कर सकता। कोर्ट ने पति द्वारा पत्नी की कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) और मोबाइल डाटा मांगने की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित मौलिक अधिकार है, जिसमें व्यक्ति की व्यक्तिगत अंतरंगता, पारिवारिक जीवन की पवित्रता और संचार की गोपनीयता शामिल है।

दुर्ग जिले के निवासी याचिकाकर्ता ने राजनांदगांव जिले की युवती से 4 जुलाई 2022 को हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था। पति का आरोप था कि विवाह के कुछ ही दिन बाद पत्नी अपने मायके चली गई और उसके व्यवहार में अचानक बदलाव आ गया। बाद में उसने पति और ससुराल पक्ष के साथ दुर्व्यवहार किया तथा वैवाहिक दायित्वों से इंकार कर दिया।

इस स्थिति में पति ने पहले वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना हेतु धारा 9 के तहत याचिका दायर की, फिर तलाक के लिए धारा 13(1)(1) के तहत अर्जी लगाई। इसी दौरान पत्नी ने भी पति के खिलाफ धारा 125 के तहत भरण-पोषण का आवेदन और ससुराल पक्ष पर घरेलू हिंसा कानून के तहत मामला दर्ज कराया।

कॉल डिटेल मांगने की याचिका:

पति ने आरोपों के समर्थन में पत्नी की कॉल डिटेल्स मंगवाने के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, दुर्ग को आवेदन दिया, लेकिन जानकारी नहीं मिलने पर वह फैमिली कोर्ट गया, जहाँ से उसकी याचिका खारिज कर दी गई। इसके बाद उसने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।

हाईकोर्ट का रुख:

न्यायमूर्ति राकेश मोहन पांडेय की एकलपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि:

  • याचिकाकर्ता द्वारा दायर तलाक याचिका में व्यभिचार का कोई स्पष्ट आरोप नहीं है।
  • कॉल डिटेल्स की मांग करते समय भी कोई ठोस या वैध आधार नहीं प्रस्तुत किया गया।
  • सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के अनुसार, किसी व्यक्ति की कॉल डिटेल, मोबाइल संचार या व्यक्तिगत डाटा उसकी निजता का हिस्सा है।
  • वैवाहिक जीवन साझेदारी का प्रतीक हो सकता है, लेकिन यह एक-दूसरे की निजता को स्वत: समाप्त नहीं करता।

कोर्ट ने कहा कि किसी की कॉल डिटेल्स तक पहुँच माँगना, विशेषकर तब जब व्यभिचार का कोई स्पष्ट आरोप ही नहीं हो, निजता के अधिकार का उल्लंघन है और यह संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य है।

विवाह में भी निजता जरूरी:

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी स्पष्ट किया कि पति-पत्नी का संबंध भले ही निकटतम हो, पर यह एक-दूसरे के संप्रभु अधिकारों को समाप्त नहीं करता। कोई भी पति अपनी पत्नी को मोबाइल फोन, बैंक खाते, या किसी भी निजी डाटा का पासवर्ड साझा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। ऐसा कोई भी प्रयास गोपनीयता के उल्लंघन के साथ-साथ मानसिक प्रताड़ना या घरेलू हिंसा के दायरे में आ सकता है।

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