बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित पुलिस हिरासत में मौत के मामले में हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। जांजगीर-चांपा जिले के मुलमुला थाना क्षेत्र में एक युवक की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के मामले में बिलासपुर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने हत्या की धारा 302 को घटाकर गैरइरादतन हत्या की धारा 304(भाग-2) में बदलते हुए आरोपित चार पुलिसकर्मियों की सजा में भी संशोधन किया है।
न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल और न्यायमूर्ति दीपक कुमार तिवारी की युगलपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि घटना की परिस्थितियों और सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों के आधार पर यह मामला ‘इरादतन हत्या’ नहीं बल्कि ‘गैरइरादतन हत्या’ की श्रेणी में आता है। अदालत ने आरोपितों को आजीवन कारावास की सजा के बजाय 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही निचली अदालत द्वारा लगाया गया जुर्माना यथावत रखा गया है।
घटना 17 सितंबर 2016 की है। मुलमुला थाने को सूचना मिली कि ग्राम नरियरा निवासी सतीश नोरगे विद्युत उपकेंद्र में शराब पीकर उपद्रव कर रहा है। सूचना मिलते ही तत्कालीन थाना प्रभारी जितेंद्र सिंह राजपूत कांस्टेबल दिलहरन मिरी, सुनील ध्रुव और सैनिक राजेश कुमार के साथ मौके पर पहुंचे। सतीश को नशे की हालत में हिरासत में लिया गया और उसका मेडिकल परीक्षण कराया गया जिसमें उसकी शराब के नशे में होने की पुष्टि हुई।
इसके बाद उसे धारा 107 और 116 के तहत गिरफ्तार कर थाने लाया गया और परिजनों को जानकारी दी गई। लेकिन अगले दिन सुबह पुलिस ने बताया कि सतीश की तबीयत बिगड़ गई है और उसे अस्पताल ले जाया जा रहा है। पामगढ़ अस्पताल में डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
पुलिस हिरासत में युवक की मौत के बाद परिजनों और ग्रामीणों ने भारी हंगामा किया। जांच के बाद चार पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर विशेष सत्र परीक्षण संख्या 27/2016 के अंतर्गत जांजगीर न्यायालय में चालान पेश किया गया।
निचली अदालत ने सभी आरोपियों— तत्कालीन टीआई जितेंद्र सिंह राजपूत, कांस्टेबल सुनील ध्रुव, दिलहरन मिरी और सैनिक राजेश कुमार को भारतीय दंड संहिता की धारा 302/34 के तहत दोषी मानते हुए आजीवन कारावास और दो-दो हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।
आरोपितों ने इस सजा के खिलाफ बिलासपुर हाईकोर्ट में अपील दायर की। हाईकोर्ट ने पूरे मामले की सुनवाई के बाद माना कि आरोपितों का इरादा सतीश की हत्या करने का नहीं था, लेकिन उनके कृत्य से उसकी मृत्यु हुई। इसलिए यह मामला धारा 304(भाग-2) के तहत आता है, जिसमें गैरइरादतन हत्या का प्रावधान है।
हाईकोर्ट का फैसला
- धारा 302 की जगह अब धारा 304(भाग-2)/34 के तहत दोषसिद्धि।
- आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 10 वर्ष कठोर कारावास।
- जुर्माना और अन्य शर्तें यथावत रहेंगी।
- आपराधिक अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया।
यह मामला पुलिस हिरासत में मानवाधिकार हनन के गंभीर आरोपों का उदाहरण रहा है। हालांकि हाईकोर्ट ने इस बात को रेखांकित किया कि आरोपी पुलिसकर्मियों की नीयत हत्या की नहीं थी, लेकिन उनके कृत्य ने एक युवक की जान ले ली, जिसके लिए उन्हें गैरइरादतन हत्या का दोषी माना गया। यह फैसला कानून और संवेदनशीलता के संतुलन का महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकता है।