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राफेल डील मामला: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की सारी याचिकाएं, बोला- जांच की जरूरत नहीं…

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय वायु सेना के लिए फ्रांस से अरबों रुपए के राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के समझौते की न्यायालय की निगरानी में जांच के लिए दायर याचिकाओं को रद्द कर दिया है. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने इस मामले में दायर याचिकाओं पर फैसला दिया. राफेल डील पर दखल देने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार करते हुए कहा कि किसी धारणा के आधार पर फैसला नहीं दे सकते. कोर्ट ने ये भी कहा कि ऑफसेट पार्टनर चुनने के माममे में पक्षपात के सबूत नहीं मिले हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि खरीद प्रक्रिया को लेकर हम संतुष्ट हैं और संदेह की कोई वजह नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के लिए यह सही नहीं है कि वह एक अपीलीय प्राधिकारी बने और सभी पहलुओं की जांच करे. कोर्ट ने कहा कि हमें ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिला जिससे लगे कि कोई कॉमर्शल पक्षपात हुआ हो. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि ऑफसेट पार्टनर के विकल्प में दखल देने की भी कोई वजह नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार को 126 विमानों की खरीद के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं. कोर्ट के लिए यह उचित नहीं होगा कि वह केस के हर पहलू की जांच करे. कोर्ट ने यह भी कहा कि प्लेन की कीमत की तुलना करना कोर्ट का काम नहीं है. उच्चतम न्यायालय ने फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीद के मामले में मोदी सरकार को क्लीन चिट दे दी है. याचिकाकर्ता और अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गलत बताया है.

इस सौदे को लेकर आप पार्टी के सांसद संजय सिंह और इसके बाद दो पूर्व मंत्रियों और भाजपा नेताओं यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी के साथ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने एक अलग याचिका दायर की. इस याचिका में अनुरोध किया गया कि लड़ाकू विमानों की खरीद के सौदे में कथित अनियमितताओं के लिये केन्द्रीय जांच ब्यूरो को केस दर्ज करने का निर्देश दिया जाए. केन्द्र सरकार ने फ्रांस से 36 लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे का पुरजोर बचाव किया और इनकी कीमत से संबंधित विवरण सार्वजनिक करने की मांग का विरोध किया.

भारत ने करीब 58,000 करोड़ रुपए की कीमत से 36 राफेल विमान खरीदने के लिए फ्रांस के साथ समझौता किया है ताकि भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता में सुधार किया जा सके. शीर्ष अदालत ने इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि राफेल विमान की कीमतों के बारे में तभी चर्चा हो सकेगी जब वह फैसला कर लेगा कि क्या इन्हें सार्वजनिक किया जाना चाहिए. कोर्ट ने यह टिप्पणी उस वक्त की थी जब सरकार ने विमान सौदे की कीमतों के विवरण का सार्वजनिक रूप से खुलासा करने से इंकार करते हुए कहा था कि इससे देश के दुश्मनों को लाभ मिल सकता है.

राफेल सौदे में कथित अपराधिता के मुद्दे और इसकी न्यायालय की निगरानी में जांच कराने की दलीलों पर शीर्ष अदालत ने दसाल्ट एविएशन द्वारा ऑफसेट साझेदार का चयन और फ्रांस के साथ अंतर-सरकार समझौते सहित अनेक मुद्दों पर सरकार से सवाल किये थे. लड़ाकू विमान की कीमत सार्वजनिक करने से इनकार करते हुए अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा था कि 2016 में सिर्फ विमान की कीमत मुद्रा विनिमय की दर के आधार पर 670 करोड़ रुपए थी और विमान में लगी सैन्य साजोसज्जा की कीमत का खुलासा करने से प्रतिद्वन्दियों को लाभ मिल सकता है.

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