डोनाल्ड ट्रंप कह चुके हैं कि अगर उत्तर कोरिया ने कोई नासमझी भरा कदम उठाया तो ऐसी तबाही होगी जैसी दुनिया ने आज तक नहीं देखी होगी
चार कारण जिनके चलते लाख चाहने पर भी अमेरिका उत्तर कोरिया पर हमला नहीं कर सकता
अमेरिका और उत्तर कोरिया में तीखी बयानबाजी जारी है. कुछ दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि उनकी सेना सेना उत्तर कोरिया से निपटने के लिए हर तरह से तैयार है. इससे ठीक पहले उत्तर कोरिया ने प्रशांत महासागर में स्थित अमेरिकी द्वीप गुआम पर हमले की धमकी दी थी. इसके बाद डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर कहा कि अगर उत्तर कोरिया कोई नासमझी भरा कदम उठाया तो वे सैन्य कदम उठाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. एक अन्य ट्वीट में उनका यह भी कहना था कि ऐसे में उत्तर कोरिया को ऐसी तबाही का सामना करना पड़ेगा जैसी दुनिया ने आज तक नहीं देखी होगी.
सवाल उठता है कि क्या ऐसा वास्तव में हो सकता है. इसी साल अमेरिका सीरिया में सीधे मिसाइल हमला कर चुका है. इसके बाद कयास लग रहे हैं कि वह उत्तर कोरिया में भी इसी राह पर जा सकता है. अमेरिका के उप राष्ट्रपति माइक पेंस भी कह चुके हैं कि उत्तर कोरिया के साथ कूटनीतिक संयम बरतने के दिन लद चुके हैं. तो क्या अब अमेरिका उत्तर कोरिया पर किसी भी दिन हमला बोल सकता है? इस सवाल की पड़ताल करें तो तमाम आशंकाओं से उलट ऐसे कई कारण दिखते हैं जो बताते हैं कि अमेरिका लाख चाहने के बाद भी उत्तर कोरिया पर हमला नहीं कर सकता.
सीरिया और उत्तर कोरिया में बड़ा अंतर
अगर सीरिया और उत्तर कोरिया की वर्तमान सैन्य क्षमताओं की तुलना की जाए तो सीरिया इस मामले में उत्तर कोरिया के सामने कहीं नहीं टिकता. सीरिया की बशर अल असद सरकार की ताकत का आकलन इसी बात से हो जाता है कि उनके पास अपने देश के अंदर विद्रोहियों का मुकाबला करने तक की शक्ति नहीं है और इसके लिए उसे रूस, ईरान और लेबनान के हिजबुल्लाह की मदद लेनी पड़ी रही है.
वहीँ, अगर उत्तर कोरिया को देखें तो वह सीरिया से कहीं ज्यादा ताकतवर नजर आता है. दक्षिण कोरियाई खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार 1967 की तुलना में उत्तर कोरिया की ‘कोरियन पीपुल्स आर्मी’ ने तेजी से प्रगति की है. उस समय जहां उसकी सेना में करीब साढ़े तीन लाख जवान ही थे. वहीं, अब यह आंकड़ा 12 लाख है. इस लिहाज से उसकी सेना दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं की सूची में अमेरिका और भारत के बाद तीसरे नंबर पर आती है. इसके अलावा उत्तर कोरिया में हर नागरिक के लिए साल में कम से कम दो बार सैन्य प्रशिक्षण लेना भी अनिवार्य है जिससे युद्ध के वक्त सभी को लड़ने के लिए बुलाया जा सके. इन्हीं खुफिया एजेंसियों की मानें तो केवल सैन्य ताकत बढ़ाने पर ही जोर देने वाला उत्तर कोरिया वर्तमान में आधुनिक हथियारों के मामले में भी पांच विश्व शक्तियों के आस-पास ही नजर आता है. अपनी परमाणु संपन्नता को भी वह पांच बार परीक्षण करके साबित कर चुका है.
अगर, अमेरिका के नजरिये से देखें तो सीरिया पर हमला करने के बाद अमेरिका को उससे कोई प्रत्यक्ष खतरा नहीं नजर आता. लेकिन उत्तर कोरिया के मामले में ऐसा नहीं है. पिछले दिनों पेंटागन के एक अधिकारी ने मीडिया से कहा था कि उन्हें ऐसी खबरें मिली हैं कि उत्तर कोरिया ने अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) बना ली है. अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक उत्तर कोरिया के पास आईसीबीएम तकनीक आने का मतलब है कि अमेरिका उसके निशाने पर आ सकता है. उत्तर कोरिया कह भी चुका है कि अगर उसे उकसाया गया तो वह अमेरिका पर बिना बताए परमाणु हमला करने से भी नहीं हिचकेगा.
दक्षिण कोरिया और जापान की चिंता
पिछले दिनों जब ट्रंप प्रशासन ने अपने युद्ध पोत कार्ल विंसन को कोरियाई प्रायद्वीप में तैनात करने का आदेश दिया तो इसने सबसे ज्यादा दक्षिण कोरिया और जापान को चिंतिंत कर दिया. कोरियाई मीडिया के अनुसार इन खबरों के तुरंत बाद ही दक्षिण कोरिया के विदेश विभाग ने अमेरिकी विदेश विभाग से सम्पर्क साधा और उसे उत्तर कोरिया पर किसी तरह की सैन्य कार्रवाई का आदेश न देने को कहा.
विशेषज्ञों की मानें तो दक्षिण कोरिया और जापान दोनों ये तो चाहते हैं कि अमेरिका उनके साथ खड़ा दिखाई दे. लेकिन, वे किसी भी कीमत पर उत्तर कोरिया पर हमला करना नहीं चाहते. खबरें ये भी हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से जितना परेशान उनके विरोधी थे, उतना ही दक्षिण कोरिया और जापान भी. इसका कारण चुनाव प्रचार के दौरान उत्तर कोरिया पर हमले को लेकर दिए गए डोनाल्ड ट्रंप के बयान हैं. यही कारण था कि ट्रंप के शपथ लेने से एक महीने पहले ही जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे उनसे मिलने पहुंचे थे. ये दोनों ही देश उत्तर कोरिया के संकट को बिना युद्ध के हल करने पर जोर देते हैं.
जानकारों की मानें तो दोनों देश उत्तर कोरिया की सैन्य क्षमताओं से अच्छे से वाकिफ हैं. वे जानते हैं कि उत्तर कोरिया सिर्फ गीदड़भभकी नहीं दे रहा और अगर युद्ध हुआ तो वह उन पर परमाणु हमले से भी नहीं हिचकेगा. पूरी दुनिया के लिए व्यापार के लिहाज से बेहद अहम मानी जानी वाली दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल उत्तर कोरियाई सीमा से महज 35 मील दूर है. उत्तर कोरिया कई बार कह चुका है कि युद्ध छिड़ने पर वह सबसे पहले सियोल को ही अपना शिकार बनाएगा.
अमेरिकी सेना के रिटायर कर्नल सैम गार्डनर अटलांटिक पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में कहते हैं, ‘युद्ध छिड़ने पर पहले 24 से 48 घंटों में ही उत्तर कोरिया सियोल का नक्शा बदल कर रख देगा और लाख कोशिशों के बाद भी अमेरिका सियोल की रक्षा नहीं कर सकता.’ गार्डनर बताते हैं कि 1994 में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भी उत्तर कोरिया के योंगबायोन रिएक्टर पर बमबारी करने की योजना बना ली थी. लेकिन, दो कारणों के चलते बिल्कुल अंतिम समय में उन्हें अपना इरादा बदलना पड़ा था. पहला कारण रेडियोएक्टिव पदार्थ के लीक होने से पड़ोसी देशों को होने वाला नुकसान था. जबकि, दूसरा उत्तर कोरिया की प्रतिक्रिया से सियोल के तबाह होने का डर था.
चीन भी यह युद्ध नहीं चाहता
डोनाल्ड ट्रंप सहित लगभग हर व्यक्ति जानता है कि अगर बिना युद्ध के कोई उत्तर कोरिया मामले का निपटारा करवा सकता है तो वह चीन ही है. यही कारण है कि पिछले दिनों चीन के राष्ट्रपति से हुई मुलाकात के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने सबसे ज्यादा जोर उत्तर कोरिया के संकट को शांति से हल करने पर दिया. उन्होंने हर तरह से शी जिनपिंग को इसके लिए मनाने की कोशिश की. यहां तक कि अपने बयानों के विपरीत जाकर उन्होंने इस समस्या के हल होने पर चीन को व्यापार बढ़ाने का लालच भी दे दिया.
हालांकि, चीनी विशेषज्ञों की मानें तो चीन खुद इस समस्या को शांति से हल करना चाहता है. क्योंकि, वह जानता है कि युद्ध की स्थिति में उसे कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. उसके लिए सबसे बड़ी समस्या उत्तर कोरियाई शरणार्थी होंगे, जो युद्ध छिड़ने पर शत्रु देश जापान और दक्षिण कोरिया न जाकर केवल चीन में आने का प्रयास करेंगे.
व्यापरिक दृष्टि से भी चीन के लिए उत्तर कोरिया बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है. पिछले चार दशकों से उत्तर कोरियाई बाजार में चीन का एक छत्रराज कायम है. इसके अलावा अमेरिकी सेनाओं की इस क्षेत्र में उपस्थिति ने भी चीन को परेशान कर रखा है और इसीलिए वह जल्द इस समस्या को हल करना चाहता है. चीन लगातार यही कोशिश कर रहा है कि किसी तरह युद्ध की स्थिति को खत्म किया जा सके. पिछले हफ्ते चीनी विदेश मंत्री ने अमेरिका और उत्तर कोरिया दोनों को ही चेताते हुए कहा था कि अगर युद्ध हुआ तो उसमें जीत किसी की नहीं होगी जबकि दोनों को कभी न दूर होने वाले जख्म झेलने पड़ सकते हैं. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि बातचीत ही विवाद सुलझाने का एकमात्र विकल्प है जिसके लिए चीन अपनी पूरी कोशिश करेगा.
युद्ध की स्थिति में चीन को उत्तर कोरिया का साथ देना ही होगा
अमेरिका अगर उत्तर कोरिया पर हमला करता है तो उसे लेने के देने पड़ सकते हैं क्योंकि युद्ध की स्थिति में चीन को हर हाल में उत्तर कोरिया का साथ देना ही होगा. चीन के ऐसा करने के पीछे का कारण उसकी अमेरिका और उत्तर कोरिया के साथ हुई दो संधियां हैं.
1950 से लेकर 1953 तक उत्तर और दक्षिण करिया के बीच चले युद्ध में चीन और रूस ने उत्तर कोरिया का साथ दिया था. 27 जुलाई 1953 को संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में हुई एक युद्धविराम संधि के साथ ही यह युद्ध खत्म हुआ था. इस संधि के दौरान वाशिंगटन और बीजिंग के बीच एक समझौता यह भी हुआ था कि अगर अमेरिका भविष्य में उत्तर कोरिया पर हमला करता है तो युद्धविराम संधि टूट जाएगी.
इसके अलावा 1961 में चीन और उत्तर कोरिया की वामपंथी सरकारों ने आपस में एक और महत्वपूर्ण संधि की थी. इसका नाम ‘चीन-उत्तर कोरियाई पारस्परिक सहायता और सहयोग मित्रता संधि’ था. इस संधि में कहा गया है कि यदि चीन और उत्तर कोरिया में से किसी भी देश पर अगर कोई अन्य देश हमला करता है तो दोनों देशों को तुरंत एक-दूसरे का सहयोग करना पड़ेगा. पिछले सालों में इन दोनों देशों ने इस संधि की वैधता की अवधि बढ़ाकर 2021 तक कर दी है. विदेश मामलों के कुछ जानकार कहते हैं कि इस संधि से दोनों देशों को बड़ा फायदा मिला है. जहां चीन ने इससे अपने व्यापारिक हित साधे वहीं, उत्तर कोरिया यह संधि करके अपने आप को और सुरक्षित करने में कामयाब हो गया.