जानिए क्या है भारत-चीन के बीच का पंचशील समझौता?
डोकलाम विवाद के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच श्यामन में पहली बार बातचीत हुई. दोनों नेताओं ने गर्मजोशी के साथ एक दूसरे से हाथ मिलाया और उनके बीच करीब 45 मिनट तक बातचीत हुई. पीएम मोदी ने कहा कि भारत द्विपक्षीय बातचीत को लेकर उत्साहित है. ब्रिक्स सम्मेलन की सफलता पर चीन को बधाई देना चाहता हूं. ब्रिक्स को प्रासंगिक बनाने में यह शिखर सम्मेलन बेहद सफल हुआ है.
वहीं चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग ने पीएम मोदी से कहा कि चीन भारत के साथ मिलकर पंचशील के सिद्धांत के तहत काम करने को तैयार है. इसके बाद एक बार फिर से पंचशील समझौते की याद हो आई है.
पंचशील समझौता है क्या?
पंचशील समझौते पर 63 साल पहले 29 अप्रैल 1954 को हस्ताक्षर हुए थे.चीन के क्षेत्र तिब्बत और भारत के बीच व्यापार और आपसी संबंधों को लेकर ये समझौता हुआ था. इस समझौते की प्रस्तावना में पांच सिद्धांत थे, जो अगले पांच साल तक भारत की विदेश नीति की रीढ़ रहे. इसके बाद ही हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगे और भारत ने गुट निरपेक्ष रवैया अपनाया. हालांकि 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में इस संधि की मूल भावना को काफी चोट पहुंची.
किसके बीच हुआ था समझौता?
ये समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में हुआ था, चीन के पहले प्रीमियर (प्रधानमंत्री) चाऊ एन लाई के बीच हुआ था.
‘पंचशील’ शब्द कहां से लिया गया
दरअसल, पंचशील शब्द ऐतिहासिक बौद्ध अभिलेखों से लिया गया है जो कि बौद्ध भिक्षुओं का व्यवहार निर्धारित करने वाले पांच निषेध होते हैं. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वहीं से ये शब्द लिया था. इस समझौते के बारे में 31 दिसंबर 1953 और 29 अप्रैल 1954 को बैठकें हुई थीं जिसके बाद बीजिंग में इस पर हस्ताक्षर हुए.
पंचशील के सिद्धांत
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व
परस्पर अनाक्रमण
एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना
समान और परस्पर लाभकारी संबंध
एक दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान
इस समझौते के तहत भारत ने तिब्बत को चीन का एक क्षेत्र मान लिया था, इस तरह उस समय इस संधि ने भारत और चीन के संबंधों के तनाव को काफी हद तक दूर कर दिया था. भारत को 1904 की ऐंग्लो तिबतन संधि के तहत तिब्बत के संबंध में जो अधिकार मिले थे भारत ने वे सारे इस संधि के बाद छोड़ दिए थे.