बिलासपुर। रायल सीमा कांक्रीट स्लीपर्स (पाटिल रेल इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड) प्रबंधन ने स्थानीय 150 मजदूरों को साजिश के तहत बाहर निकाल दिया है। श्रम न्यायालय के आदेश के बाद भी इन्हें ज्वाइनिंग नहीं दी जा रही है। श्रमिकों का आरोप है कि प्रबंधन बंधक बनाकर ओडिशा के करीब 200 मजदूरों से काम करा रहा है।
ज्ञात हो कि कोटा करगीकला में रायल सीमा कांक्रीट स्लीपर्स नाम से फैक्ट्री संचालित है। फरवरी 2015 में प्रबंधन ने फैक्ट्री को बंद होने का झांसा देकर स्थानीय 150 मजदूरों को कंपनी से बाहर निकाल दिया। श्रम विभाग को भी पत्र लिखा कि कंपनी दूसरी जगह शिफ्ट हो रही है। इसलिए मजदूरों का पुराना हिसाब कर भुगतान किया जा रहा है, लेकिन अधिकांश मजदूर अपना भुगतान नहीं ले रहे हैं। इनके लिए भुगतान लेने के लिए समय निर्धारित कर दिया गया है। यदि तय समय में ये यहां से भुगतान नहीं लेंगे तो कंपनी के हेड ऑफिस हैदराबाद से भुगतान किया जाएगा। भुगतान लेने के लिए मजदूरों को हैदराबाद के ऑफिस में संपर्क करना पड़ेगा। इधर, कंपनी से निकाले गए मजदूरों ने कलेक्टर, एसडीएम, तहसीलदार, श्रम विभाग और श्रम न्यायालय में केस दायर कर दिया। सभी जगह मजदूरों के मामले की सुनवाई हो रही थी। एक माह बाद मार्च 2015 में प्रबंधन ने ओडिशा से करीब 200 मजदूरों को बुलवा लिया और कोटा थाने में लिखकर दे दिया कि वे कंपनी चालू करना चाहते हैं, लेकिन कुछ लोग कंपनी को चालू होने नहीं दे रहे हैं। इसलिए उन्हें हर समय पुलिस बल चाहिए। पुलिस प्रशासन के बल पर कंपनी चालू हो गई। इधर, कलेक्टर, श्रम न्यायालय से मजदूरों के पक्ष में फैसला हुआ कि इन्हें कंपनी में वापस लिया जाए। मजदूर जब कोर्ट का आदेश लेकर कंपनी गए तो उन्हें अंदर घुसने नहीं दिया गया। कंपनी चालू है, लेकिन स्थानीय 150 मजदूर अब बेरोजगार हो गए हैं।
कोटा ब्लॉक के दवनपुर निवासी कन्हैया लाल मरकाम भी कंपनी में 22 साल से काम कर रहा था। उसे भी साजिश के तहत निकाल दिया गया है। उसने आरोप लगाते हुए बताया कि कंपनी प्रबंधन ओडिशा के मजदूरों से ठेकेदारी में काम करा रहे हैं। उन्हें रहने-खाने को दिया जा रहा है और कंपनी में बंधक बनाकर रखा गया है। केमिकल मजदूर यूनियन राजनांदगांव के महासचिव भीम राव बागड़े के अनुसार श्रम न्यायालय ने 25 सितंबर 2017 को ओमप्रकाश समेत 17 मजदूरों को उनके पुराने पद पर ज्वाइन कराने का आदेश दिया था। इसके बावजूद प्रबंधन किसी को वापस नहीं ले रहा है। दबाव बनाने पर कंपनी ने इनका ट्रांसफर तमिलनाडु, गुजरात, आंध्रप्रदेश कर दिया। उनका कहना है कि जब कंपनी कोटा में चल रही है तो फिर इनका ट्रांसफर क्यों किया गया। यह तो सरासर मानसिक प्रताड़ना है। कंपनी से निकाले गए 17 मजदूर सोमवार को कलेक्टोरेट पहुंचे थे। इनके हाथों में एक-एक अर्जी थी। इन्होंने कलेक्टर को आपबीती सुनाई और मांग की कि प्रशासन कंपनी के साथ वार्ता कर उन्हें न्याय दिलाए।