मध्य प्रदेश में अब तक के सबसे ज्यादा मतदान ने राजनीतिक दलों की धड़कनें बढ़ा दी है। ज्यादा मतदान को भाजपा अपने पक्ष में बता रही है, वहीं कांग्रेस इसे बदलाव से जोड़ रही है। मतदान के दौरान ईवीएम की गड़बड़ी की शिकायतें करने वाली कांग्रेस विभिन्न क्षेत्रों की जानकारी भी जुटा रही है और पता कर रही है कि क्या ईवीएम की गड़बड़ी से मतदान के प्रतिशत पर असर पड़ा है।
मध्य प्रदेश में लगातार चौथी बार सत्ता में आने के लिए भाजपा ने ऐड़ी चोटी का जोर लगाया है, लेकिन उसके नेता भी नतीजों को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है। हालांकि मतदान के दिन की रणनीति से पार्टी की आशाएं बढ़ी है। दोपहर बाद पार्टी ने सक्रियता बढ़ाते हुए कई क्षेत्रों में अपने समर्थक वर्ग को मतदान के लिए बाहर निकालने के प्रयास किए। इसका असर भी देखने को मिला। भाजपा का कहना है कि बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत में एक कारण यह भी हैं।
2013 में भाजपा की 22 सीटें बढ़ी थीं
भाजपा को बीते 2013 के चुनाव में मतदान बढ़ने से लाभ हुआ था। 2008 की तुलना में लगभग पौने तीन फीसदी मतदान बढ़ने से भाजपा की 22 सीटें बढ़ गई थी और कांग्रेस की 13 सीटें घट गई थी। हालांकि इसके पहले 2003 की तुलना में 2008 में मतदान बढ़ने पर कांग्रेस को कुछ लाभ जरूर मिला था, लेकिन वह भाजपा को हराने के लिए नाकाफी था। साल 2003 के विधानसभा चुनाव में 67.25 फीसदी मतदान हुआ था, तब भाजपा को 173 व कांग्रेस को 38 सीटें मिली थी। वहीं 2008 के चुनाव में 69.28 फीसदी मतदान में कांग्रेस को 71 व भाजपा को 143 सीटें मिली थीं।
ईवीएम भी बन रही है मुद्दा
भाजपा नेताओं का मानना है कि भारी मतदान के जरिए जनता ने कांग्रेस के बदलाव के दावों को नकारा है। हालांकि भाजपा ने इस मतदान की हकीकत जानने के लिए हर क्षेत्र से आकलन मंगाया है कि मतदाताओं का रुख किस तरफ रहा और उसका समर्थक वर्ग उसके साथ कितना रहा। वहीं कांग्रेस का मानना है कि सरकार के दुरुपयोग व भाजपा की तिकड़मों का जवाब देने के लिए ही जनता ने ज्यादा मतदान कर बदलाव सुनिश्चित किया है। कांग्रेस को इस बात की भी आशंका है कि ईवीएम में गड़बड़ी हो सकती है। इसके लिए पार्टी हर क्षेत्र से अपने संगठन का आकलन मंगा रही है। अगर उसके आकलन से नतीजे अलग आए तो ईवीएम के मुद्दे पर भी विचार किया जाएगा।
– कब कितना मतदान –
साल मत फीसदी
2003 – 67.25 फीसदी
2008 – 69.28 फीसदी
2013 72.66 फीसदी
2018 74.84 फीसदी