जबसे कुछ सत्ताधारी नेता “चौकीदार चोर है” आरोप को गले का हार बनाकर अपने नाम के आगे चौकीदार लिखने लगे हैं, तबसे देश के लगभग 15 लाख से अधिक असली चौकीदारों को लगा है कि अब उनके दिन भी बहुरेंगे। ऐसा इसलिए कि उनके व उनके परिवार वालों के वोट मिलाकर लगभग 1 करोड़ से अधिक हो जा रहे हैं।
अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव में एक-एक लोकसभा सीट जीतने की जुगत लगाई जा रही है तब इतने वोट बहुत मायने रखते हैं। गांवों के चौकीदारों से लगायत किसी कालोनी में, किसी की दुकान, घर या फैक्ट्री की चौकीदारी करने वालों के वेतन बहुत ही कम हैं। गांवों के चौकीदारों को तो अलग – अलग राज्यों में 1500 रुपये से लेकर 10 हजार या उससे अधिक तक है।
अभी जब कुछ मंत्री व सत्ताधारी नेता अपने नाम के आगे चौकीदार लगाने लगे हैं, तो कुछ राज्यों ने चौकीदारों के मानदेय बढ़ाने की घोषणा कर दी है। लेकिन झारखंड व अन्य कई राज्यों में कई माह से वेतन ही नहीं मिले हैं।उनको साप्ताहिक छुट्टी तक नहीं मिलती है। वेतन भी कई माह बाद मिलता है। यदि छुट्टी पर गये तो उतने दिन का वेतन काट लिया जाता है। बीमार पड़े तो चिकित्सा आदि की भी सुविधा नहीं। रहने के लिए भी व्यवस्था नहीं। कोई पेंशन नहीं। संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता रहे जलाधिकार संस्था के प्रमुख व सीए कैलाश गोदुका का कहना है कि किसी तरह से जीवन यापन कर रहे असली चौकीदारों को लगने लगा है कि जब देश के हुक्मरान लोकसभा चुनाव के समय अपने नाम के आगे चौकीदार शब्द लगाने लगे हैं, तो असली चौकीदारों पर दया भी करेंगे।
अब तो केन्द्र व राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों में चौकीदार, सफाईकर्मी तक के पद के लिए कई-कई लाख बेरोजगार स्नातक ,स्नातकोत्तर , पीएचडी , इंजीनियर , डाक्टर आवेदन कर रहे हैं। इसलिए चौकीदारों को भी सत्ताधारी नेताओं की तरह कुछ मूलभूत सुविधाएं मिलनी ही चाहिए। वरना चौकीदार प्रेम भी देश के लगभग 15 लाख असली चौकीदारों तथा उनके एक करोड़ परिजनों के वोट लुभाकर चुनाव जीतने के बाद जुमला ही कहा जाने लगेगा।