वक्त जितनी तेजी से बदल रहा है, संचार माध्यम भी उसी रफ्तार से अत्याधुनिक होकर हमारी जिंदगी में दखल दे रहे है। ज्ञान और सूचना के लिए जाना जाने वाला सोशल मीडिया अब हमारी जिंदगी का सबसे अहम हिस्सा बन चुका है। इसके फायदे चाहे जो भी हों, इसकी लत सेहत को कई तरह से नुकसान भी पहुंचा रही है। बता रही हैं दर्शनी प्रिय
फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे अति सक्रिय प्लेटफार्म पल-पल बदलती जिंदगी को अपडेट करने के सशक्त पैमाने बनकर उभरे हैं। इस बदलती आभासी दुनिया में आप तभी सफल माने जाएंगे, जब लाइक्स और करंट स्टेटस के मानदंड पर खड़े उतरेंगे। जाहिर है मॉडर्न कहलाना है, तो इन जगहों पर अपडेट रहना होगा। लगातार चलते रहने वाले लाइक्स और अपडेट्स के खेल ने दो कदम आगे बढ़ाकर हमे आभासी दुनिया का एकांतिक खिलाड़ी बना दिया है, जहां यह सेहत को मानसिक और शारीरिक दोनों स्तरों पर नुकसान पहुंचा रहा है।
बन रहा परेशानी का सबब
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हमारी जिंदगी बेशक कुछ आसान हुई है, लेकिन अब ये संचार माध्यम फायदे से कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचाने लगे हैं। कमेंट और लाइक्स का खेल सोशल मीडिया के आदि हो चुके लोगों के जीवन में परेशानी का सबब बन चुका है। साल 2012 में हावर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोध में यह बात सामने आई कि सोशल मीडिया का असर कोकीन और अन्य नशीली चीजों जैसा ही होता है। दोनों ही चीजों से हमारे मस्तिष्क का समान हिस्सा सक्रिय होता है। डेना बॉएड की नई किताब में बच्चों द्वारा सोशल मीडिया पर बिताए जाने वाले वक्त को जटिलताओं भरा बताया गया है। ‘लाइव्स ऑफ टीन’ नाम की इस किताब में किशोरों और तकनीक के साथ उनके संबंधों से जुड़े कई प्रचलित मिथकों को ध्वस्त किया गया है।
क्या है सोशल मीडिया
सोशल मीडिया इंटरनेट के जरिये एक ऐसी आभासी दुनिया पेश करता है, जिसमें हम सूचनाओं का तेजी से आदान-प्रदान करते हैं और उसे असल दुनिया समझ बैठते हैं। वास्तव में लोग उस आभासी दुनिया में इस कदर खो जाते हैं कि वे असल दुनिया से कट जाते हैं। इस तरह वे अलगाव, तनाव और अवसाद को न्योता देते हैं। फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे लोकप्रिय माध्यम सामाजिक बिखराव के बड़े कारण के रूप में सामने आए हैं। भले ही इन्होंने हमें देश-दुनिया की सूचनाओं से जोड़े रखा, पर अवसाद, अकेलेपन और तनाव की ओर भी धकेला है। सूचना के माध्यमों का सीमित उपयोग ज्ञान और समझ को बढ़ाने के लिहाज से मुफीद है, लेकिन इसका असीमित उपयोग हानिकारक है।
हो सकते हैं बड़े नुकसान, सोशल डिसॉर्डर की आशंका
सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में हर समय लाखों लोग सक्रिय रहते हैं। इसमें लोग एक-दूसरे से रोजाना ऑनलाइन मिलते हैं और अपनी बातें साझा करते हैं। आखिरकार वे दोस्त बन जाते हैं, पर इस चक्कर में वे अपने असली दोस्तों से लगातार दूर होते जाते हैं। ऐसे ही समय में सोशल डिसॉर्डर की समस्या दस्तक देती है।
दिमाग पर पड़ सकता है बुरा असर
इंटरनेट का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल इनसान के दिमाग को इस तरह परिवर्तित कर सकता है, जिससे उसका ध्यान, स्मृति और सामाजिक दृष्टिकोण प्रभावित हो सकते हैं। ‘वर्ल्ड साइकाइट्री’ पत्रिका में प्रकाशित एक अनुसंधान में यह बात सामने आई है। इंटरनेट से मिलने वाले संदेश हमें अपना ध्यान लगातार उस ओर लगाए रखने के लिए प्रेरित करते हैं। इससे किसी कार्य पर ध्यान बनाए रखने की क्षमता कम होने लगती है।
कमजोर हो सकती है याददाश्त
एक अध्ययन के मुताबिक, इंटरनेट का अत्यधिक इस्तेमाल याददाश्त पर विपरीत असर डालता है। ऐसे लोगों के दिमाग में महत्वपूर्ण जानकारी सुरक्षित नहीं रह पाती। दरअसल, खाली समय में दिमाग जानकारियों को सुरक्षित करने का काम करता है। उस समय भी ऑनलाइन गतिविधियों में व्यस्त रहने से दिमाग को आराम नहीं मिल पाता, जिसका असर याददाश्त पर पड़ता है।
संवाद कौशल होता है प्रभावित
हमेशा ऑनलाइन रहने वाले लोगों में सामाजिकता की कमी आ जाती है। घंटों चुपचाप इंटरनेट पर सक्रिय रहने से साइलेंसी के खतरे दोगुने हो जाते हैं। यह चुप्पी बाद के जीवन को बुरी तरह प्रभावित करती है। बातचीत की प्रभावशाली कला आपकी सफलता के प्रतिशत को बढ़ा देती है, जबकि इस समस्या के बाद यह कला कमजोर पड़ जाती है।
बन सकते हैं चिड़चिडे़ और अवसादग्रस्त
सोशल मीडिया की लत अकारण तनाव, चिंता, चिड़चिड़ापन और अन्य मानसिक समस्याओं को भी न्योता देती है। शोध में इस बात की भी पड़ताल की गई कि ये परिकल्पनाएं किस हद तक मनोवैज्ञानिक और न्यूरोइमेजिंग शोध के निष्कर्षों से समर्थित हैं। ऑस्ट्रेलिया की वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी के जोसेफ फर्थ के मुताबिक, इस रिपोर्ट का निष्कर्ष यह है कि इंटरनेट का अत्यधिक इस्तेमाल यूजर को मनोरोगी बना रहा है। देर रात तक जागकर इंटरनेट का इस्तेमाल करना न सिर्फ मानसिक, बल्कि शारीरिक रूप से भी बीमार बना सकता है।
इन खतरों को न करें नजरअंदाज
– अवसाद, तनाव या उदासीनता में बढ़ोतरी।
– दिमाग में न्यूरो टॉक्सिन स्रावित होने की आशंका।
– चिड़चिड़ापन गुस्सैल प्रवृति का आना।
– एकांतिक और अकेलेपन का शिकार रहना।
– याददाश्त में लगातार कमी।
– ध्यान का भंग होना।
– स्लीप डिसॉर्डर की समस्या।
– मस्तिष्क के लगातार हाई एलर्ट होने से नींद की कमी।
– लगातार अपर्याप्त नींद के चलते दिल के दौरे, आघात और मेटाबॉलिज्म के असामान्य होने की आशंका।
– सामाजिक दुराव और बिखराव।
– परिवार के सदस्यों और दोस्तों के बीच असामान्य दूरियां।
जब लग जाए लत
– अपनी खास हॉबी विकसित करें।
– कोई मनपसंद किताब या मूवी देख लें।
– लगातार इंटरनेट पर बने रहने से बचें।
– अगर घर पर खाली हैं, तो पास के लॉन या पार्क में टहलने का मूड बनाएं।
– अगर आपमें रचनात्मकता है, तो लिखने की हॉबी भी विकसित कर सकते हैं।
– सामाजिक कार्यक्रमों में ज्यादा से ज्यादा उपस्थिति दिखाएं।
– टेबलेट और फोन आदि पर ज्यादा वक्त बिताने की बजाय दोस्तों से बात करें।
– संभव हो, तो दिन भर बिताए गए पलों को पारिवारिक सदस्यों से साझा करें।
– देर रात तक न जगें, सुबह जल्दी उठें।
– व्यायाम, योग, ध्यान आदि को दिनचर्या में शामिल करें।
(फोर्टिस हॉस्पिटल के सीनियर फिजिशियन डॉ. राहुल जैन और मॉडल टाउन स्थित मनोचिकित्सक डॉ. विशाल गिरोत्रा से की गई बातचीत पर आधारित)