दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार से यह बताने के लिए कहा है कि ‘क्या विवाहित व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता कम हो जाती है जो उन्हें सेना के जज एडवोकेट जनरल (जैग) में नियुक्ति के लिए अयोग्य ठहरा दिया गया है। हाईकोर्ट ने सरकार को यह भी बताने के लिए कहा है कि अविवाहित व्यक्ति विवाहित महिला व पुरुषों से बेहतर कैसे हैं।
चीफ जस्टिस डी.एन. पटेल व जस्टिस सी. हरि. शंकर की पीठ ने यह पूछा कि विवाह के बाद महिला व पुरुषों में किस चीज की कमी हो जाती है। पीठ ने सरकार से कहा कि यदि कोई महिला व पुरुष लिवइन में रहते हैं तो ऐसे मामले में क्या किया जाएगा। हाईकोर्ट ने आर्मी के जज एडवोकेट जनरल (जैग) यानी कानूनी शाखा में विवाहित महिलाओं और पुरुषों की नियुक्ति पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।
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शादी बिना जीवन दुखी होगा, प्रमाण नहीं
सरकार व सेना की ओर से दाखिल इस हलफनामें में कहा गया था कि अब तक इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि शादी के बिना व्यक्ति का जीवन दुखी या अस्वस्थ होगा। अधिवक्ता कुश कालरा की ओर से दाखिल जनहित याचिका के जवाब में सरकार और सेना ने यह हलफनामा दाखिल किया था।
नीति को रद्द करने की मांग की गई
याचिका में इसे विवाहित महिलाओं व पुरुषों के साथ-भेदभावपूर्ण नीति बताते हुए रद्द करने की मांग की। खास बात है कि 2017 तक सेना के कानूनी शाखा यानी जैग में सिर्फ विवाहित महिलाओं की नियुक्ति पर प्रतिबंध थी। लेकिन बाद में सरकार ने इसमें संशोधन करके विवाहित पुरुषों की नियुक्ति भी रोक दी गई।
शादी का हक जीवन का अधिकार नहीं
इसी वर्ष मार्च में सरकार व सेना ने हाईकोर्ट को बताया था कि ‘विवाह का अधिकार जीवन का अधिकार नहीं हो सकता है।’ सेना की कानूनी शाखा में विवाहित महिलाओं और पुरुषों की नियुक्ति पर लगे प्रतिबंध को सही ठहराते हुए हाईकोर्ट में सरकार और सेना ने यह दलील दी थी। सेना ने कहा कि शादी मौलिक अधिकार नहीं है।