गड़बड़ी : आवेदनों की न जांच हुई, न सर्वे, सीधे मंजूरी के लिए भेजा गया
प्राइवेट आर्किटेक्ट्स से कराया गया काम, किराएदारों के आवेदन को भी पात्र बता दिया
प्रदेश के सभी 11 निकायों में हुआ खेल, लापरवाही बरतने में दुर्ग जिला दूसरे नंबर पर
खुलासे के बाद मंत्री ने दिए जांच के आदेश, अब मामला ठंडे बस्ते में
दुर्ग. प्रधानमंत्री आवास योजना के घटक मोर जमीन मोर मकान योजना में गड़बड़ी सामने आई है। यह गड़बड़ी वर्ष 2016 से वर्ष 2018 के मध्य तैयार किए गए डीपीआर में की गई। फर्जी तरीके से डीपीआर तैयार किया गया और केंद्र सरकार से मंजूरी तक ले ली गई। यहां तक केंद्र सरकार की तरफ से राशि भी सरकारी खातों को रिलीज कर दी गई। हालांकि यह राशि ऐसे फर्जी हितग्राहियों के खातों तक नहीं पहुंच सकी। खुलासे के बाद पूरे मामले में उच्च अधिकारियों ने लीपापोती का प्रयास शुरू कर दिया है।
निकाय ने ही तय किए प्राइवेट आर्किटेक्ट
- केंद्र की पीएम आवास योजना के तहत हर परिवार को पक्का मकान बनाकर देना है। इसके तहत जिसके पास स्वयं की जमीन है, उसे 2.28 लाख रुपए का अनुदान सरकार देगी। जमीन कितनी भी बड़ी हो, लेकिन अनुदान 30 वर्ग मीटर तक भवन निर्माण के लिए दिया जाना है। इसके तहत स्थानीय निकाय स्तर पर डीपीआर तैयार कराया गया। इसके लिए निकाय ने ही प्राइवेट आर्किटेक्ट तय किए। उन्होंने शिविर व अन्य माध्यमों से आए आवेदनों को पात्र बताकर सीधे डीपीआर तैयार कर सूडा को भेजकर मंजूरी ले ली। करीब 45 हजार फर्जी डीपीआर तैयार हो गए। ये करीब 10.26 अरब का मामला है।
गड़बड़ी को आखिर कैसे दिया अंजाम, यह भी जानिए…
ऐसे अपात्रों के भी डीपीआर हो गए तैयार, मंजूरी भी मिल गई : पहले से आवास वाले आवेदनकर्ता, पक्का मकान वाले, एक ही नाम के दो या तीन जगह पर आवेदन, पानी वाली जगह के आसपास, एचटी लाइन की जगह, प्राइवेट लैंड, किराए पर रहने वाले, बिना जमीन वाले, शिफ्टेड यूएलबी, अस्थाई पट्टा, मकान नहीं चाहने वाले, डीओसी, खरीदी-बिक्री वाले पट्टे, कम जमीन वाले, आईएसएसआर, मौके पर नहीं मिले वाले लोगों के नाम पर डीपीआर तैयार कर मंजूरी ली गई है। यह कैटेगरी स्वयं सूडा की तरफ से तय की गई। जिसमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई।
कारनामा: डीपीआर के लिए बनी गाइडलाइन का पालन नहीं : सूडा द्वारा जारी गाइड लाइन के मुताबिक हर घर तक सर्वेयर को पहुंचना है। व्यक्ति व परिवार की जानकारी लेनी है। उनके मकान की आवश्यकता की जानकारी लेनी है। इसके बाद जमीन से जुड़े दस्तावेज लेने हैं। उनका परीक्षण करना है। इसके बाद उनका सत्यापन करवाकर आवेदन लिया जाना है। इसके बाद एमआईएस पोर्टल में अपलोड करना है। इस डीपीआर के आधार पर ही मंजूरी दी जानी है। पूर्व में पार्षदों व वार्डों में कैंप लगाकर आवेदन लिए गए और उन्हें सीधे स्वीकृति के लिए भेज दिया गया और मंजूरी ले ली गई। प्रापर सर्वे भी नहीं हुआ।
पूरे प्रदेश में चल रहा खेल, निकायों में सबसे ज्यादा
फर्जी डीपीआर के जरिए मंजूरी का यह खेल पूरे प्रदेश में चला। प्रदेश में करीब डेढ़ लाख आवास, योजना के तहत तैयार करने की मंजूरी ली गई है। इसमें 30 हजार तैयार भी हो चुके हैं। 30 प्रतिशत आवासों के मामले फर्जी निकले हैं। पिछले दिनों जांच में खुलासे के बाद नगरीय प्रशासन मंत्री शिव डहरिया ने अफसरों को फटकारा भी। उन्होंने जांच कर रिपोर्ट देने कहा। फिर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
2077 फर्जी डीपीआर दुर्ग निगम में: दुर्ग निगम में करीब 4009 आवासों की मंजूरी ली गई है। इसमें 2077 फर्जी डीपीआर तैयार कर मंजूरी ली गई। जांच में इसका खुलासा हुआ है। प्रदेश में यह दूसरी सबसे बड़ी संख्या है। इसके अलावा रायपुर में सबसे अधिक करीब 2800 फर्जी डीपीआर तैयार कर मंजूरी ली गई। अन्य निकायों में राजनांदगांव, धमतरी, जगदलपुर, अंबिकापुर, चिरमिरी, बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा शामिल हैं।- बड़ा सवाल? आखिर किसे फायदा पहुंचाया गया?: इस पूरे मामले में आशंका बड़े घोटाले की जताई जा रही है। अपात्र या बिना हितग्राहियों के मामले में डीपीआर तैयार कर स्वीकृति के मामले को लेकर मंजूरी को लेकर सवाल उठ रहे हैं। आखिर इससे किसको फायदा पहुंचा। क्या ऐसे फर्जी डीपीआर के जरिए सरकार से मिलने वाली अनुदान को लेकर बंदरबांट होता। इसे लेकर संशय अब भी बरकरार है।
जिलों से जानकारी जुटाने, कंसल्टेंट एजेंसियों पर रोक लगाने कहा
सवाल शिव डहरिया, मंत्री नगरीय प्रशासन छत्तीसगढ़ शासन वर्ष 2016 से 2018 के बीच फर्जी डीपीआर तैयार कर पीएम आवास योजना में लापरवाही बरती गई, क्या आपको जानकारी है? जी हां, मुझे इस बारे में पता चला है, अधिकारियों की बैठक में मुझे इस बारे में बताया गया था। करीब 30 फीसदी डीपीआर फर्जी तैयार कर स्वीकृति ली गई, क्या यह बड़ी लापरवाही नहीं है? बिल्कुल लापरवाही है, मैंने संबंधित अधिकारियों को फटकार भी लगाई। क्या किसी प्रकार की कार्रवाई इस मामले की गई या कोई जांच बैठाई गई है? सचिव से कहा है कि वे सभी जिलों में इसकी जानकारी जुटाएं। तत्काल कंसल्टेंट एजेंसियों पर रोक लगाए। जिस समय की यह बात है उस समय पूरे प्रोजेक्ट के ओएसडी मोहन पुरी गोस्वामी थे। उनके खिलाफ कोई जांच हो रही है? डीपीआर आर्किटेक्ट व कंसल्टेंट ने तैयार किया था। क्या शासन-प्रशासन के अधिकारियों की इसमें कोई जिम्मेदारी नहीं थी? वह हम पता लगा रहे हैं। साथ में ही फर्जी मंजूरी के मामलों को सुधारा भी जा रहा है। फिलहाल पूरे मामले की जांच के लिए कहा गया है। लापरवाही बरतने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।