बापू के नाम से लोगों के दिलों में बसे महात्मा गांधी का आज ही के दिन जन्म हुआ था और उन्होंने देश की आजादी के लिए अपनी जान तक लगा दी. आज उनकी 150वीं जयंती पर पूरा राष्ट्र उन्हें याद कर रहा है. गांधी जी ने पूरा जीवन लोगों को अहिंसा का पाठ पढ़ाया और अंग्रेजों को भी उनके सामने झुकना पड़ा. देश के आजाद होने के बाद भारत के लोग खुश थे. देश में लोकतंत्र का परचम लहराने लगा था लेकिन ये खुशी उस वक्त राष्ट्रीय शोक में बदल गई, जब 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली के बिड़ला भवन में गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
जी हाँ, 30 जनवरी 1948 का दिन था जब गांधीजी ने सरदार पटेल को बातचीत के लिए शाम 4 बजे मिलने के लिए बुलाया था. उस समय पटेल अपनी बेटी मणिबेन के साथ तय समय पर गांधीजी से मिलने के लिए पहुंच गए थे और बिड़ला भवन में हर शाम 5 बजे प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता था. वहीं इस सभा में गांधी जी जब भी दिल्ली में होते तो शामिल होना नहीं भूलते थे और उस दिन भी शाम के 5 बज चुके थे. उसके बाद गांधीजी सरदार पटेल के साथ बैठक में व्यस्त थे लेकिन तभी अचानक सवा 5 बजे गांधी जी की नजर घड़ी पर गई और उन्हें याद आया कि प्रार्थना के लिए वक्त निकलता जा रहा है. वहीं बैठक समाप्त होते ही बापूजी आभा और मनु के कंधों पर हाथ रखकर प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए मंच की तरफ आगे बढ़ रहे थे, लेकिन उसी समय उनके सामने नाथूराम विनायक गोडसे आ गया. नाथूराम गोडसे ने अपने सामने गांधी जी को देखकर हाथ जोड़ लिया और कहा- ‘नमस्ते बापू!’, तभी बापूजी के साथ चल रही मनु ने कहा- ”भैया, सामने से हट जाओ बापू को जाने दो, पहले से ही देर हो चुकी है.”
उसके बाद नाथूराम गोडसे ने मनु को धक्का दे दिया और अपने हाथों में छुपा रखी छोटी बैरेटा पिस्टल गांधीजी के सामने तान दी, और देखते-ही-देखते गांधीजी के सीने पर एक के बाद एक तीन गोलियां दाग दीं. वहीं दो गोलियां बापू के शरीर से होती हुईं बाहर निकल गईं, जबकि एक गोली उनके शरीर में ही फंसकर रह गई, और गांधीजी वहीं पर गिर पड़े. उसके बाद उनकी मौत हो गई. गांधी जी की हत्या के बाद गोडसे ने अपना जुर्म कबूल करते हुए कहा था, ”शुक्रवार की शाम 4.50 बजे मैं बिड़ला भवन के गेट पर पहुंच गया, मैं चार-पांच लोगों के झुंड के बीच में घुसकर सिक्योरिटी को झांसा देते हुए अंदर जाने में सफल रहा. मैंने भीड़ में अपने आप को छिपाए रखा, ताकि किसी को मुझ पर शक न हो. शाम 5.10 बजे मैंने गांधी जी को अपने कमरे से निकलकर प्रार्थना सभा की ओर जाते हुए देखा.
गांधीजी के अगल-बगल दो लड़कियां थीं, जिसके कंधे पर वो हाथ रखकर चल रहे थे. मैंने अपने सामने गांधी को आते देख सबसे पहले उनके महान कामों के लिए हाथ जोड़कर प्रणाम किया और दोनों लड़कियों को उनसे अलग कर गोलियां चली दीं. मैं दो ही गोली चलाने वाला था. लेकिन तीसरी भी चल गई और गांधी जी वहीं पर गिर पड़े. जब हमने एक के बाद एक तीन गोलियां गांधीजी पर चली दीं तो गांधीजी के आसपास खड़े लोग दूर भाग गए. मैंने सरेंडर के लिए दोनों हाथ भी ऊपर कर दिए, उसके बाद कोई हिम्मत करके मेरे पास नहीं आ रहा था, पुलिसवाले भी दूर से ही देख रहे थे. मैं खुद पुलिस-पुलिस चिल्लाया, करीब 5-6 मिनट के बाद एक व्यक्ति मेरे पास आया. उसके बाद मेरे सामने भीड़ जमा हो गई और लोग मुझे पीटने लगे.”