एनकाउंटर के बाद किस तरह की होती है जांच, सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में दिया था ये आदेश यूपी STF ने एनकाउंटर में विकास दुबे को किया ढेर विपक्ष कर रहा है एनकाउंटर के जांच की मांगधारा 176 के तहत मजिस्ट्रेट से जांच अनिवार्य उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने गैंगस्टर विकास दुबे को एनकाउंटर में मार गिराया है. विपक्षी दल एनकाउंटर पर सवाल उठा रहे हैं और जांच की मांग कर रहे हैं. ऐसे में अब ये सवाल उठता है कि एनकाउंटर के बाद किस तरह की जांच होती है. सितंबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस एनकाउंटर के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए थे.
तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर एनकाउंटर की जांच स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए और जांच खत्म होने तक इसमें शामिल पुलिस वालों को प्रमोशन या वीरता पुरस्कार नहीं मिलेगा.
धारा 176 के तहत जांच जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सीआरपीसी की धारा 176 के तहत हर एनकाउंटर की मजिस्ट्रेट से जांच अनिवार्य होगी. ये भी कहा गया था कि पुलिसवालों को अपराधियों के बारे में मिली सूचना को रिकॉर्ड कराना होगा और हर एनकाउंटर के बाद अपने हथियारों और गोलियों को जमा करना होगा.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, पुलिस की गोलीबारी वाले मामलों में घटना की जांच या तो सीआईडी करे या संबंधित थाने से इतर कोई दूसरा थाना इसकी छानबीन करे. तब चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि जांच की रिपोर्ट मजिस्ट्रेट, राज्य मानवाधिकार आयोग या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजी जाएगी. और पुलिस मुठभेड़ के मामलों की जांच का नेतृत्व वो अधिकारी करेगा, जो घटना में शामिल पुलिस अधिकारियों से वरिष्ठ हो.
कोर्ट ने ये भी कहा था कि सूत्रों द्वारा कथित आरोपी और उसके ठिकाने के बारे में दी गई जानकारियां लिखित रूप में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में दर्ज की जाएंगी. यानी विकास दुबे का एनकाउंटर करने वाली टीम को इस प्रक्रिया से गुजरना होगा. और आत्मरक्षा के अधिकार के तहत अपनी कार्रवाई को जायज साबित करना होगा.