इतिहास: भारत का एकमात्र ऐसा किला जो जमीन पर नहीं, बल्कि जमीन के अंदर हैं, सैकड़ों सुरंग और तहखाने हैं, यहां जाने के नाम से ही कापते हैं लोग
वैसे तो भारत में कई ऐतिहासिक किले हैं, लेकिन बिहार के रोहतास जिले के पास अफगान शासक शेरशाह सूरी का किला है...
वैसे तो भारत में कई ऐतिहासिक किले हैं, लेकिन बिहार के रोहतास जिले के पास अफगान शासक शेरशाह सूरी का किला है, जिसे ‘शेरगढ़ का किला’ कहते हैं। ये किला दूसरे किलों से एकदम अलग है। इस किले में सैकड़ों सुरंग और तहखाने हैं। किसी को नहीं पता से सुरंगे कहां खुलती हैं। इसके बारे में आज तक किसी को मालूम नहीं है। ये वही किला है जहां मुगल शासकों ने शेरशाह सूरी और उनके पूरे परिवार की हत्या कर कत्लेआम मचाया था।
क्या है इस किले की खास बात ?
ये भारत का एकमात्र ऐसा किला है जो जमीन के ऊपर नहीं, बल्कि जमीन के नीचे स्थित है। करीब 400 साल पुराने इस किले को अफगान शासक शेरशाह सूरी यहां रहते थे। इसलिए इसे ‘शेरगढ़ का किला’ कहा जाता है।
रोहतास जिले के चेनारी प्रखंड में कैमूर पहाड़ियों पर मौजूद ये किला इस तरह बनाया गया है कि बाहर से किसी को नहीं दिखता। ये चारों तरफ से ऊंची दीवारों से घिरा है।
-जबकि इसके एक तरफ ‘दुर्गावती नदी’ बहती है। इस किले में चारों तरफ सुरंगों का जाल बिछा है। इस किले के अंदर जाने के लिए भी एक सुरंग से होकर जाना पड़ता है। अगर सुरंगे बंद कर दी जाएं तो ये किला दिखाई भी नहीं देता।
-दरअसल, शेरशाह सूरी अपने दुश्मनों से बचने और सुरक्षित रहने के अपने परिवार और सैनिकों के साथ इसी किले में रहते थे। इस किले के अंदर हर तरह की सुविधाएं मौजूद थीं।
-किले से हर दिशा में 10 किमी दूर से आते हुए दुश्मन को भी देखा जा सकता है। इस किले के तहखाने इतने बड़े हैं कि उनमें करीब 10 हज़ार सैनिक ठहर सकते हैं।
-यहां मौजूद तहखानों में काफी दिनों के लिए खाना और पानी स्टोर किया जा सकता था। इस किले के अंदर एक बड़ा कुंआ भी है, जिसमें सैकड़ों साल बाद आज भी पानी एकत्र है।
-400 साल पहले बना ये किला रहस्यमयी है। इसमें बनी सुरंगे मुसीबत के समय किले के बाहर जाने के लिए बनवाई गई थीं।
-जबकि यहां पर बने तहखाने दुश्मनों को सजा देने के लिए बनाए गए थे। इस किले में जितनी सुरंगें हैं उतनी दूसरे किसी अन्य किले में नहीं हैं। यही कारण था कि शेरशाह सूरी को ये किला बेहद पसंद था।
-इन सुरंगों का राज सिर्फ शेरशाह और उसके कुछ भरोसेमंद सैनिकों को ही पता था। इनमें से एक सुरंग के बारे में कहा जाता है कि वो रोहतास किले तक जाती है। जबकि बाकी सुरंगों के बारे में आजतक किसी को कुछ भी मालूम नहीं है।
इन सुरंगों में हुआ था नरसंहार
आज भी इस किले की सुरंगों में जाने से हर कोई डरता है, डर के पीछे कारण इनमें हुए हजारों कत्ल हैं। इतिहासकारों के मुताबिके जब मुगलों को शेरशाह के इस किले के बारे में पता चला तो उन्होंने इसपर हमला कर दिया। मुगल शासक हुमायूं ने शेरशाह सूरी के पूरे परिवार का कत्लेआम कर उनके शव किले के पास ही बहने वाली ‘दुर्गावती नदी’ में फेंक दिए थे। जबकि शेरशाह के हजारों सैनिकों को किले के अंदर की सुरंगो में ही मार डाला था। इस नरसंहार के बाद से ये किला आज भी वीरान पड़ा हुआ है.
हालांकि, इस ऐतिहासिक किले के बारे में गहरी जानकारी इतिहासकारों के पास भी नहीं है। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक इस किले पर पहले राजा शाहबाद का शासन था। लेकिन रोहतास किले पर कब्जा करने के बाद शेरशाह की इस किले पर नजर पड़ी और इसे भी उन्होंने अपने अधीन कर लिया। जबकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि शेरशाह सूरी को ये किला उनके प्रिय मित्र खरवार राजा गजपती ने तोहफे में दिया था।
-कहते हैं शेरशाह की बहुत सारी टकसालें थीं, जिनमें वो सोने और चांदी के सिक्के बनवाया करते थे। उनमें से एक शेरगढ़ के किले में थी। इस किले में शेरशाह का खजाना कहीं छुपा है, जो कभी भी ढूंढा नहीं गया। इस किले में जाने से डरने की वजह से किसी ने भी आजतक कोशिश नहीं की। वो खजाना अभी भी यहीं दबा है और इसे मुगल आक्रमणकारी भी ढूंढ नहीं पाए।
क्या कहते हैं जानकार
रोहतास के इतिहासकार डॉ. श्याम सुन्दर तिवारी भी मानते हैं कि वर्तमान शेरगढ़ का नाम पहले भुरकुड़ा का किला था. उसका उल्लेख मध्यकालीन इतिहास की पुस्तकों तारीख-ए-शेरशाही और ‘तबकात-ए-अकबरी’ में मिलता है. खरवार राजाओं ने अपने किले को रोहतासगढ़ की ही तरह अति प्राचीन काल में बनवाया था. लेकिन इस किले पर 1529-30 ई. में शेर खां ने अधिकार कर लिया.
उन्होंने बताया, ” फ्रांसिस बुकानन के अनुसार यहां भारी नरसंहार हुआ था. इसी कारण यह किला अभिशप्त और परित्यक्त हो गया. लेकिन एक सवाल अब भी यहां उठ रही है कि क्या स्वतंत्र भारत में भी इसकी अभिशप्तता खत्म नहीं होगी? क्या किसी हुक्मरान की नजरें अब भी इनायत नहीं होंगी?”