Monday, December 23, 2024
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महाराष्ट्र में भाजपा ने सत्ता की बजाय हिन्दुत्व पर खेला दांव, फडणवीस को भी आखिरी मौके पर लगी भनक…

महाराष्ट्र में बड़े राजनीतिक फेरबदल में भाजपा ने शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर भविष्य के लिए बड़ा दांव चला है। इससे उसने सत्ता के बजाय हिन्दुत्व की विचारधारा की लड़ाई का संदेश तो दिया ही है, महाराष्ट्र के भीतर शिवसेना में उद्धव ठाकरे की ताकत को कम करने की कोशिश की है। इसका पहला असर बीएमसी के चुनाव में देखने को मिल सकता है जहां अभी शिवसेना सत्ता में है। शिंदे के जरिए उसने मराठा कार्ड भी चला है। इतना ही नहीं, अपने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को उपमुख्यमंत्री के लिए भी मनाया, ताकि विदर्भ के साथ भी संतुलन बनाया जा सके।

भाजपा की यह रणनीति महाराष्ट्र की राजनीति को तो लंबे समय के लिए प्रभावित करेगी ही, आने वाले विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी व्यापक असर डालेगी। बीते 24 घंटे से भी कम समय में उतारचढ़ाव भरी राजनीति में सुप्रीम कोर्ट के फैसले, उद्धव ठाकरे के इस्तीफे, फडणवीस को लेकर भाजपा के ट्वीट और आखिर में शिंदे के मुख्यमंत्री और उससे भी आगे फडणवीस के उप मुख्यमंत्री बनने तक पल-पल राजनीति बदलती रही।

राजनीतिक दृष्टि से भले ही यह बदलाव महाराष्ट्र में दिखे, लेकिन भाजपा की भावी कार्य योजना में इसमें पूरे देश के लिए उसकी रणनीति झलकती है। इसमें उसका देशभर में कांग्रेस मुक्त शासन का एजेंडा भी छुपा हुआ है। भाजपा की कोशिश है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले देश में कहीं भी कांग्रेस की सत्ता में हिस्सेदारी न हो और वह एक नए संदेश के साथ चुनाव मैदान में उतरे।

फडणवीस को आखिरी मौके पर पता चला

महाराष्ट्र का यह बदलाव कितना गोपनीय हुआ, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा के हर कदम की किसी को भी भनक नहीं लग सकी। नई सरकार के गठन के केंद्र में रहे देवेंद्र फडणवीस को भी आखिरी मौके पर संदेश मिला कि मुख्यमंत्री तो शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे ही बनेंगे। इसके बाद फडणवीस ने जब खुद ही कहा कि वह सत्ता से बाहर रहेंगे तो उनको निर्देश दिया गया कि वह न केवल सरकार में शामिल हों, बल्कि उपमुख्यमंत्री भी बने।

हिन्दुत्व के साथ सामाजिक समीकरण

भाजपा महाराष्ट्र में दो दलों में बंटी हिन्दुत्व की विचारधारा और समर्थकों को एकजुट अपने साथ रखना चाहती थी। यही वजह है उसने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को उसके नेताओं के जरिए ही न केवल तोड़ा, बल्कि उसके ही नेता को मुख्यमंत्री बनाकर ठाकरे परिवार को शिवसेना की राजनीति में हाशिए पर धकेलने की कोशिश की है। भाजपा ने यह संदेश भी दिया है कि वह अपनी सत्ता के लालच में यह सब नहीं कर रही थी, बल्कि विचारधारा की लड़ाई को मजबूत करने के लिए उसने ऐसा किया, क्योंकि ठाकरे कांग्रेस और एनसीपी के साथ चले गए थे। शिंदे चूंकि मराठा हैं इसलिए महाराष्ट्र के सामाजिक समीकरणों में वह प्रभावी होंगे।

पूरे देश में लाभ लेने की कोशिश होगी

भाजपा को अपनी इस रणनीति का लाभ पूरे देश में मिलेगा और वह अन्य दलों को भी यह संदेश देगी कि विचारधारा की लड़ाई में जो कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के खिलाफ हैं, वह उनके साथ है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अपनी इस रणनीति का बड़ा लाभ मिलने की उम्मीद है। इसके पहले होने वाले दर्जनभर विधानसभा चुनाव में भी वह बड़ी सफलता की उम्मीद लगा रही है।

तीसरा राज्य, जहां पलटी बाजी

केंद्र में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान भाजपा ने दो राज्यों में सत्ता की बाजी हारने के बाद भी पलटवार करते हुए उसे जीतने में सफलता हासिल की है। इस क्रम में महाराष्ट्र तीसरा राज्य है। इसके पहले कर्नाटक और मध्य प्रदेश में उसने सत्ता की बाजी पलटी थी। अब तीसरा दांव महाराष्ट्र पर खेला गया है।

झारखंड पर नजर

भाजपा 2024 लोकसभा चुनाव के पहले झारखंड पर भी नजर रखे हुए है। झारखंड में भी नरम-गरम चलता रहता है और वहां पर भी कुछ बदलाव देखने में आ सकते हैं।

उद्धव की मुश्किलें बढ़ीं

महाराष्ट्र की राजनीति में देखा जाए तो भाजपा के इस दांव से सबसे बड़ी दिक्कत उद्धव ठाकरे के लिए खड़ी हो गई है। उनके सामने अब बाला साहब ठाकरे की विरासत और शिवसेना को अपने पास बनाए रखने की चुनौती है। विधायक दल तो अधिकांश टूट सकता है। सांसदों में भी टूट हो सकती है। इतना ही नहीं, शिवसेना की कार्यकारिणी में भी फूट पड़ जाए तो बड़ी बात नहीं होगी।

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