विधानसभा सदन में शक्ति परीक्षण के जरिये नई सरकार बनने के बाद महाराष्ट्र में स्थिति बदल गई है। अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले, जिसमें विधानसभा के पूर्व डिप्डी स्पीकर की अयोग्यता का नोटिस और उसके बाद राज्यपाल के शक्ति परीक्षण देने के आदेश के खिलाफ याचिकाओं के मामले व्यर्थ हो गए हैं। शिंदे गुट के 16 बागी विधायकों को पहले दिया गया अयोग्यता का नोटिस भी व्यर्थ हो गया है।
संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि इन दोनों मुद्दों में सुप्रीम कोर्ट के लिए निर्णित करने के लिए कुछ नहीं रह गया है। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री का दर्जा देने तथा भरत गोगावाले को पार्टी के मुख्य सचेतक के रूप में मान्यता देने के स्पीकर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। ठाकरे गुट ने याचिका में कहा है कि स्पीकर के इस फैसले से सदन में यथास्थिति बदल गई है। लेकिन कोर्ट ने कहा कि 11 जुलाई को सुनवाई की जाएगी।
असली शिवसेना कौन?
अब पूरा मामला, असली शिवसेना कौन है इस पर टिक गया है। लेकिन सदन में सबसे ज्यादा विधायकों वाला दल एकनाथ शिंदे समूह का है। लोकसभा के पूर्व अपर सचिव देवेंद्र सिंह के अनुसार शिंदे का दो तिहाई समूह और ठाकरे का एक तिहाई समूह दो अलग दल के रूप में बन गए हैं। संविधान की 10वीं अनुसूची के अनुसार, अलग हुआ गुट दो तिहाई होना चाहिए। ऐसे में एक तिहाई गुट जो बचा हुआ है वह भी वैध है। ऐसी स्थिति में निर्वाचन आयोग इन दलों को अलग-अलग चुनाव चिन्ह देने पर पर विचार करेगा। जैसे जनता दल के मामले में हुआ था।
फ्लोर टेस्ट के बाद गौण हो गआए सारे मुद्दे
लोकसभा के पूर्व उप सचिव एनके सपरा के अनुसार सदन में शक्ति परीक्षण के जरिये नई सरकार बनने के बाद ये मुद्दे गौण हो गए हैं। किसी भी सरकार का असली परीक्षण सदन के पटल पर होने वाला शक्ति परीक्षण है जो शिंदे गुट ने जीत लिया है। यह भी तब जब ठाकरे ने स्वयं ही दावा छोड़ कर उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। अब मुद्दा बचा है तो पार्टी के नेतृत्व का कि शिवसेना का असली नेतृत्व किसके हाथ में है। आने वाले समय में यह चुनाव आयोग करेगा।
चली जाएगी ठाकरे गुट की सदस्यता?
विधानसभा में बाकायदा चुने नए स्पीकर राहुल नार्वेकर के सामने नए मुख्य सचेतक गोगावाले ने अब ठाकरे गुट के 15 विधायकों को निलंबित करने की अर्जी दे दी है। उन्होंने कहा कि इन विधायकों ने पार्टी की व्हिप नहीं मानी और मतदान नहीं किया है। कोर्ट में 11 जुलाई को यह मुद्दा भी उठाए जाने की संभावना है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट विधिक रूप से चुने गए स्पीकर के फैसलों में हस्तक्षेप करेगा, इसकी संभावना नहीं है।