बिलासपुर। कांग्रेस ने मस्तूरी विधानसभा में एक ऐसे प्रत्याशी पर दांव लगाया है, जिसके पांच साल के कार्यकाल को देखकर चौतरफा विरोध हो रहा है। ग्रामीणों को वह दिन भी अब तक याद है, जब वह विधायक हुआ करते थे, तब अपने गृहग्राम से ही नाता तोड़ दिया था। विधायकी कार्यकाल में वह सूरज डूबने के बाद अपने गांव जाते थे और सूर्य उगने से पहले शहर लौट आते थे। ग्रामीणों के बीच चर्चा है कि आखिर वह 5-6 घंटे के लिए गांव क्यों आते थे।
बिलासपुर जिले की मस्तूरी विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। करीब 70 प्रतिशत आबादी अजा की ही है। यहां आदिवासी वोटर न के बराबर है। करीब 20 प्रतिशत वोट ओबीसी के हैं। सामान्य की बात करें तो इनकी संख्या 10 प्रतिशत है। वैसे मस्तूरी विधानसभा क्षेत्र में बहुजन समाज पार्टी और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जे) का कैडर वोट है। भाजपा ने यहां से पूर्व मंत्री डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी, जोगी कांग्रेस ने पूर्व जनपद अध्यक्ष चांदनी भारद्वाज और आम आदमी पार्टी ने धरम भार्गव को अपना प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस ने यहां पूर्व विधायक दिलीप लहरिया को टिकट दिया है। पिछले चुनाव में भाजपा के डॉ. बांधी ने लहरिया को करारी मात दी थी। जोगी कांग्रेस के प्रत्याशी कांग्रेस के लगभग बराबर वोट बटोरने में कामयाब रहे। पिछले चुनाव के समीकरण पर बात करें तो वहां के वोटरों ने लहरिया को इसलिए नकार दिया था, क्योंकि चुनाव जीतने के बाद वे अपने क्षेत्र को ही नहीं, बल्कि अपने गांव तक को भूल गए थे। ग्रामीणों के बीच चर्चा यह थी कि जो अपने गांव का नहीं हुआ, वह हमारा क्या होगा। इस बार ग्रामीणों के बीच फिर यही चर्चाएं हो रही हैं।
कांग्रेस सरकार के पांच साल के कार्यकाल में किया कुछ नहीं
2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ हवा चली। जनता की नाराजगी का प्रभाव इतना पड़ा कि 15 साल तक राज्य की सत्ता भोग रही भाजपा महज 15 सीट में ही सिमट गई। भाजपा के खिलाफ इतनी विरोधी लहर होने के बाद भी कांग्रेस के लहरिया बड़े अंतर से चुनाव हार गए। राज्य में पांच साल तक कांग्रेस की सरकार रही, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी लहरिया पांच साल तक मस्तूरी विधानसभा की समस्याओं से दूर ही रहे। ग्रामीणों का दावा है कि पांच साल तक लहरिया ने कुछ किया नहीं। सिर्फ अपनी झोली भरी है।
बिजली, पानी, सड़क समेत समस्याओं का अंबार
मस्तूरी विधानसभा में ऐसा कोई गांव नहीं है, जहां बिजली, पानी, सड़क की समस्या न हो। पांच साल के दौरान इस विधानसभा क्षेत्र में विकास ढूंढने से भी नहीं मिलेगा। बीते दिनों की बात है, जब टिकट घोषित होने के बाद लहरिया चुनाव प्रचार करने मस्तूरी आए तो वहां के ग्रामीणों ने उन्हें घेर लिया। समस्याओं से ग्रस्त ग्रामीणों ने उन पर जमकर भड़ास निकाली। ग्रामीणों का कहना था कि ब्लॉक मुख्यालय मस्तूरी में जब बिजली, पानी, सड़क की समस्या है तो ग्रामीण क्षेत्रों की सुविधाओं को सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। ग्रामीणों ने विरोध का बिगुल फूंकते हुए लहरिया को वहां से भगाना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि पिछली बार जब हमने जिताया था, तब सारी समस्याओं का समाधान करने का वादा किया गया था, लेकिन चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र की ओर झांक कर देखे तक नहीं। इस बीच कांग्रेस प्रत्याशी लहरिया के समर्थकों ने ग्रामीणों को समझाइश देते हुए कहा कि पिछली बार की बात को भूल जाएं, इस बार चुनाव जीतते ही सभी गांवों में विकास की गंगा बहाई जाएगी। किसी को भी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा, लेकिन ग्रामीण मानने के लिए तैयार ही नहीं हुए। उनका कहना था कि दूध से जला बालक दही को भी फूंककर पीता है। हम तो समझदार हैं, इनके झांसे में अब नहीं आने वाले। पचपेड़ी, सीपत क्षेत्र के कई गांवों में भी ऐसा ही विरोध हो रहा है।
कांग्रेस ने लंगड़े घोड़े पर लगाया है दांव
ग्रामीणों का कहना है कि मस्तूरी विधानसभा में कांग्रेस नेताओं की कमी नहीं है, लेकिन पता नहीं कांग्रेस ने इस बार फिर लंगड़े घोड़े पर दांव क्यों लगा दिया है, जबकि पिछले चुनाव में लहरिया की बखत दिख गई थी। हालांकि लहरिया को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के चेहरे पर भरोसा है। उन्हें उम्मीद है कि सीएम बघेल का व्यक्तित्व उनकी नइया पार लगा देगा।