छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) द्वारा छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार की घटना ने न्यायपालिका का ध्यान आकर्षित किया है। इस मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए डीईओ के व्यवहार पर गंभीर नाराज़गी जताई है। छात्राओं से जेल भेजने की धमकी देने के इस मामले को न्यायालय ने जनहित याचिका के रूप में पंजीकृत किया है, और कई महत्वपूर्ण सरकारी अधिकारियों से जवाब मांगा है।
यह घटना 4 सितंबर, 2024 की है, जब कुछ छात्राएं अपने स्कूल में शिक्षकों की कमी की समस्या को लेकर जिला शिक्षा अधिकारी से मिलने गईं। छात्राओं की मांग थी कि उनके स्कूल में शिक्षकों की उचित व्यवस्था की जाए, ताकि वे 12वीं की परीक्षा की तैयारी कर सकें। उन्होंने कहा कि 11वीं कक्षा तो उन्होंने जैसे-तैसे पास कर ली, लेकिन 12वीं की परीक्षा बिना शिक्षकों के पास करना कठिन होगा।
हालांकि, छात्राओं की इस जायज मांग पर डीईओ का व्यवहार बेहद अशोभनीय रहा। उन्होंने छात्राओं से कहा कि “जिंदगी भर जेल की हवा खाओगी, तब समझ में आएगा।” डीईओ द्वारा दी गई इस धमकी को स्थानीय प्रिंट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और न्यूज वेबसाइट ने व्यापक रूप से कवर किया, जिसके बाद यह मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए इसे जनहित याचिका के रूप में दर्ज किया। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने इस पर तल्ख टिप्पणी करते हुए जिला शिक्षा अधिकारी के व्यवहार की कड़ी निंदा की। कोर्ट ने विशेष रूप से इस बात पर नाराज़गी जताई कि घटना एक दिन पहले, यानी 4 सितंबर को घटी थी, और 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ था। इस अवसर पर, जब छात्रों को अपने शिक्षकों के प्रति आभार जताना चाहिए था, उन्हें शिक्षक की कमी को लेकर संघर्ष करना पड़ा।
कोर्ट ने स्कूल शिक्षा सचिव को यह निर्देश दिया है कि वे इस मामले में व्यक्तिगत हलफनामा दायर करें। हलफनामे में राज्य सरकार द्वारा उन स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए उठाए गए कदमों का विवरण प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है, जहां या तो पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं या बिल्कुल नहीं हैं। इसके साथ ही, राजनांदगांव के कलेक्टर और डीईओ को भी प्रमुख पक्षकार बनाया गया है।
हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 12 सितंबर, 2024 को निर्धारित की है। इस दौरान कोर्ट द्वारा संबंधित अधिकारियों के हलफनामे और उनके द्वारा उठाए गए कदमों का मूल्यांकन किया जाएगा। यह मामला न केवल शिक्षा प्रणाली की खामियों को उजागर करता है, बल्कि छात्रों के साथ किए गए अनुचित व्यवहार पर भी गंभीर सवाल उठाता है।
यह मामला यह दर्शाता है कि किस तरह से हमारे शैक्षणिक संस्थानों में बुनियादी संसाधनों की कमी और प्रशासनिक अधिकारियों का गलत व्यवहार छात्रों की शिक्षा को प्रभावित कर सकता है। विशेष रूप से छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में, जहां ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की स्थिति पहले से ही चिंताजनक है, ऐसी घटनाएं शिक्षा के अधिकार पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं।
छात्राओं की जायज मांग को जिस तरह से नजरअंदाज किया गया और उन पर धमकियों का प्रयोग किया गया, वह शिक्षा व्यवस्था की विफलता का प्रतीक है। इस मामले में न्यायपालिका द्वारा हस्तक्षेप किया जाना एक स्वागत योग्य कदम है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि भविष्य में छात्राओं और छात्रों को ऐसी परिस्थितियों का सामना न करना पड़े।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा इस मामले में उठाए गए कदम राज्य की शिक्षा व्यवस्था के प्रति प्रशासनिक अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं। उम्मीद है कि इस सुनवाई के बाद राज्य सरकार शिक्षकों की कमी की समस्या का समाधान करेगी और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए ठोस कदम उठाएगी।