बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के कवर्धा में पुलिस हिरासत में प्रशांत साहू की मौत ने पूरे प्रदेश में कानून व्यवस्था और सरकार की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटना को लेकर प्रदेश में सियासी माहौल गरम हो गया है। राज्य के दो उपमुख्यमंत्री और मंत्री पीड़ित परिवार को दस लाख की सहायता राशि देने पहुंचे, लेकिन इस सहायता के बाद भी विपक्ष के आरोपों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।
पूर्व विधायक शैलेश पांडे ने इस घटना को लेकर सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने सरकार की कानून व्यवस्था को पूरी तरह से विफल करार देते हुए कहा कि प्रदेश में लगातार हत्या, आगजनी, और अत्याचार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। पांडे ने आरोप लगाया कि बलौदा बाजार की घटनाओं के बाद अब कवर्धा में साहू समाज को प्रताड़ित किया जा रहा है। उनकी नज़र में, सरकार “किलर सरकार” बन चुकी है, जो कानून व्यवस्था के समक्ष नतमस्तक हो चुकी है।
घटना के बाद राज्य सरकार ने पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपये की सहायता राशि दी है। उपमुख्यमंत्री अरुण साव और राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने मृतक के परिजनों को यह राशि सौंपी। सरकार की तरफ से इसे संवेदनशीलता और न्याय की दिशा में एक कदम बताया गया, लेकिन विपक्ष इसे “कलंक मिटाने की कोशिश” कहकर नकार रहा है। शैलेश पांडे ने आरोप लगाया कि इतने दिनों बाद सहायता पहुंचाना केवल सरकार की असफलताओं को ढकने का एक प्रयास है।
पूर्व विधायक पांडे ने यह भी कहा कि प्रदेश में जब से भाजपा की सरकार बनी है, तब से हत्या, लूट और हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने गृह मंत्री से इस्तीफे की मांग भी की, यह कहते हुए कि वे कानून व्यवस्था को बनाए रखने में पूरी तरह विफल रहे हैं। दूसरी ओर, उपमुख्यमंत्री अरुण साव और उनके साथी मंत्रियों ने यह भरोसा दिलाया कि दोषियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा और न्याय सुनिश्चित किया जाएगा।
घटनाक्रम की जड़ें केवल प्रशांत साहू की मौत तक ही सीमित नहीं हैं। बलौदा बाजार और कवर्धा की घटनाओं ने राज्य की कानून व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया है। ग्रामीण इलाकों में राशन जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी, महिलाओं और बच्चों को जेल में डालने के आरोप और गांव में पसरा सन्नाटा यह दर्शाते हैं कि प्रशासनिक विफलता किस स्तर पर है।
पांडे ने इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है, ताकि पीड़ित परिवारों को न्याय मिल सके। उन्होंने कहा कि सरकार की संवेदना केवल दिखावे तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। गांव के लोग और सामाजिक नेता यह चाहते हैं कि दोषियों को कड़ी सजा मिले और प्रशासनिक ढांचे में सुधार हो ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।