बिलासपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों, विशेष रूप से कोटा विधानसभा क्षेत्र के निवासियों के लिए, बीते सोमवार का दिन राहत लेकर आया जब चार साल बाद पैसेंजर और एक्सप्रेस ट्रेनों का परिचालन फिर से शुरू हुआ। यह उन ग्रामीणों के लिए किसी उपहार से कम नहीं था, जिनकी जीवनरेखा रेलवे पर निर्भर करती है। लेकिन ट्रेनें पटरी पर आने के साथ ही राजनीति भी अपनी पुरानी धारा में बहने लगी। श्रेय लेने की होड़ शुरू हो गई और राजनीति के इस नए अध्याय ने एक बार फिर से गरम माहौल तैयार कर दिया है।
संघर्ष का लंबा इतिहास
इस पूरे घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में चार साल पहले का वह समय है, जब कोरोना महामारी के दौरान रेलवे ने छोटे स्टेशनों पर ट्रेनों का ठहराव बंद कर दिया था। इसके अलावा कई पैसेंजर ट्रेनें पूरी तरह से बंद कर दी गई थीं। इन कदमों से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आजीविका और परिवहन के साधनों पर गहरा असर पड़ा। इस स्थिति को लेकर कांग्रेस ने आंदोलन का रास्ता चुना और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए।
कांग्रेस के शहर अध्यक्ष विजय केसरवानी का दावा है कि कोटा में सबसे पहले रेल रोको आंदोलन की शुरुआत हुई थी, और इस दौरान कई कांग्रेस कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी हुई थी। उनके अनुसार, यह आंदोलन ही वह वजह थी जिससे रेलवे प्रशासन को ग्रामीण क्षेत्रों के स्टेशनों पर ट्रेन सेवाओं की बहाली करनी पड़ी। आंदोलन के दौरान कांग्रेसजनों ने जीआरपी और आरपीएफ की लाठियां भी खाईं और आज भी रेलवे कोर्ट में मुकदमा चल रहा है। यह संघर्ष का ही परिणाम है कि चार साल बाद ग्रामीणों को ट्रेन सेवाएं फिर से उपलब्ध कराई गईं।
श्रेय की राजनीति
जब ट्रेनों का परिचालन शुरू हुआ, तो कांग्रेस की ओर से इसे अपनी जीत के रूप में पेश किया गया। इंटरनेट मीडिया पर जमकर प्रचार हुआ कि यह कांग्रेस के आंदोलन का सुफल है। वहीं, दूसरी ओर केंद्रीय राज्य मंत्री ने इस ट्रेन परिचालन को केंद्र सरकार की ओर से ग्रामीणों को दिवाली का उपहार बताया। यह बयान राजनीतिक गरमाहट को और बढ़ाने वाला साबित हुआ। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि उनकी मेहनत का श्रेय किसी और को दिया जा रहा है।
जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय केसरवानी ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में यह साफ तौर पर कहा कि यह रेलवे प्रशासन के खिलाफ कांग्रेसजनों के संघर्ष का नतीजा है। उन्होंने संघर्षरत साथियों का आभार व्यक्त किया और कोटा नागरिक संघर्ष समिति के योगदान की भी सराहना की। उनके अनुसार, बिलासपुर जैसे आंदोलन प्रधान क्षेत्र में बिना संघर्ष कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता।
भाजपा का पक्ष और राजनीतिक ध्रुवीकरण
जहां कांग्रेस इसे अपनी जीत बता रही है, वहीं भाजपा इसे केंद्र सरकार की ग्रामीण हितैषी नीतियों का नतीजा मान रही है। केंद्रीय राज्य मंत्री ने इसे ग्रामीण जनता के लिए केंद्र सरकार का दिवाली उपहार बताते हुए भाजपा के विकासशील दृष्टिकोण को रेखांकित किया। हालांकि, कांग्रेस के इस विरोध प्रदर्शन और संघर्ष की पृष्ठभूमि में यह साफ है कि श्रेय लेने की इस होड़ में दोनों पक्ष अपने-अपने दावे कर रहे हैं।
रेलवे सेवाओं की बहाली से ग्रामीणों को जो राहत मिली है, वह निर्विवाद रूप से महत्वपूर्ण है। यह उन लोगों की जीवनरेखा है, जो इन सेवाओं पर अपने रोजमर्रा के कामों के लिए निर्भर हैं। लेकिन, जैसा कि भारतीय राजनीति में अक्सर देखा जाता है, हर अच्छी पहल का श्रेय लेने की होड़ तेज हो जाती है।
कांग्रेस का यह दावा कि यह उनकी मेहनत और संघर्ष का परिणाम है, और भाजपा का इसे अपनी उपलब्धि बताना, दोनों ही पक्षों के लिए राजनीति का हिस्सा है। इस पूरी घटना से यह स्पष्ट है कि ग्रामीणों को सेवाएं बहाल करना जितना जरूरी था, उतना ही जरूरी इसे राजनीतिक चश्मे से देखना भी हो गया है।
आखिरकार, जनता के हितों की पूर्ति में श्रेय किसे मिलता है, यह बहस का विषय हो सकता है, लेकिन जो असल मायने रखता है, वह यह है कि चार साल के लंबे इंतजार के बाद ग्रामीणों को उनकी लाइफलाइन फिर से मिली है।