बिलासपुर। छत्तीसगढ़ की प्रमुख नदियों में से एक अरपा नदी के संरक्षण और पुनर्जीवन से जुड़े मामलों में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में आज अहम सुनवाई हुई। ये जनहित याचिकाएँ (पीआईएल) पर्यावरण संरक्षण और नदी के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं। अरपा नदी बिलासपुर और आस-पास के क्षेत्रों की जल आवश्यकताओं को पूरा करती है और इसका संरक्षण क्षेत्रीय पर्यावरण संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
सुनवाई में मुख्य रूप से दो पीआईएल शामिल थे:
1. अरपा अर्पण महा-अभियान बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (WPPIL No. 21/2020)
2. PIL No. 113/2019
हालांकि, दूसरा मामला एक अलग बेंच के समक्ष लंबित है, लेकिन दोनों याचिकाओं का उद्देश्य अरपा नदी की स्थिति सुधारना है। इन मामलों में राज्य सरकार की नीतियों, पर्यावरणीय प्रभावों, और विभिन्न विभागों की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
अरपा अर्पण महा-अभियान की ओर से वकील अंकित पांडे ने याचिकाकर्ता का पक्ष रखा, जबकि राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता वाई.एस. ठाकुर ने प्रतिवाद किया। इसके अतिरिक्त, मामले में कई अन्य महत्वपूर्ण संस्थाएँ शामिल थीं, जिनमें केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, बिलासपुर नगर निगम, और प्रमुख सचिव जैसे महत्वपूर्ण अधिकारी भी थे।
राज्य सरकार ने सुनवाई के दौरान एक हलफनामा प्रस्तुत किया, जिसमें अरपा नदी के संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए किए जा रहे प्रयासों का विवरण दिया गया। सरकार का दावा था कि वह नदी की स्थिति को सुधारने के लिए सक्रिय कदम उठा रही है, लेकिन याचिकाकर्ता के वकील ने इन दावों पर सवाल उठाते हुए अदालत से अधिक समय की मांग की, ताकि वह इस हलफनामे का विस्तृत उत्तर दाखिल कर सके। अदालत ने यह समय प्रदान करते हुए मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2025 के दूसरे सप्ताह में निर्धारित की है।
अरपा नदी बिलासपुर क्षेत्र की जीवनरेखा मानी जाती है। यह न सिर्फ इस क्षेत्र की जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है, बल्कि इसके इर्द-गिर्द का पर्यावरण और कृषि व्यवस्था भी नदी पर निर्भर है। हाल के वर्षों में नदी की हालत अत्यंत दयनीय हो गई है, जिससे स्थानीय लोग और पर्यावरणविद चिंतित हैं। नदी में प्रदूषण की बढ़ती मात्रा और अवैध अतिक्रमण इसके जलस्तर को लगातार घटा रहे हैं। इसी के मद्देनजर इन जनहित याचिकाओं का महत्व और बढ़ जाता है।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट इस मामले में अहम भूमिका निभा रहा है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं की चिंताओं को गंभीरता से लेते हुए इस मामले में व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है। इस तरह की सुनवाई से यह संकेत मिलता है कि न्यायपालिका भी पर्यावरणीय मुद्दों पर सतर्क है और ठोस कदम उठाने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
अरपा नदी संरक्षण को लेकर स्थानीय समूह और पर्यावरणविद पहले से ही आंदोलन कर रहे हैं। “अरपा अर्पण महा-अभियान” जैसे संगठनों ने इस मुद्दे को उठाकर समाज में जागरूकता बढ़ाई है। जनहित याचिकाएँ इस दिशा में एक सकारात्मक कदम हैं, लेकिन केवल अदालती आदेशों से ही समस्या का समाधान नहीं होगा। सरकार, स्थानीय प्रशासन और आम नागरिकों को मिलकर इस दिशा में ठोस प्रयास करने होंगे ताकि अरपा नदी फिर से अपनी पुरानी गरिमा हासिल कर सके।
अगली सुनवाई से उम्मीद की जा रही है कि राज्य सरकार और अन्य पक्षकार मिलकर इस दिशा में ठोस कार्ययोजना प्रस्तुत करेंगे। यह देखना अहम होगा कि क्या आने वाले समय में अरपा नदी के संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाते हैं या यह मामला भी अन्य पर्यावरणीय मुद्दों की तरह सिर्फ अदालतों तक सीमित रह जाएगा।
अरपा नदी का संरक्षण न सिर्फ इस क्षेत्र के पर्यावरण के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। अदालत में चल रही सुनवाई से उम्मीद बंधी है कि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे और अरपा नदी को पुनर्जीवित किया जा सकेगा।