बिलासपुर। अवैध प्लॉटिंग और शासकीय जमीन के दुरुपयोग के मामलों में प्रशासनिक कार्रवाई का दोहरा रवैया आज चर्चा का विषय बन गया है। बिलासपुर में हाल ही में कुदुदंड क्षेत्र की करोड़ों की शासकीय जमीन पर अवैध प्लॉटिंग के मामले में सख्त कार्रवाई करते हुए प्रशासन ने न केवल जमीन वापस ली, बल्कि लीजधारक और बिल्डर के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई। वहीं दूसरी ओर बिरकोना की आदिवासी भूमि के मामले में प्रशासन की चुप्पी और आधी-अधूरी कार्रवाई ने सवाल खड़े कर दिए हैं।
कुदुदंड की 2.13 एकड़ जमीन, जिसे आवासीय प्रयोजन के लिए लीज पर दिया गया था, पर लीजधारक भूपेंद्र राव तामस्कर और बिल्डर राजू गर्ग ने नियमों का उल्लंघन करते हुए 54 टुकड़ों में बेच दिया। कलेक्टर अवनीश शरण के निर्देश पर इस लीज को निरस्त कर शासकीय भूमि के रूप में पुनः दर्ज किया गया। इसके साथ ही लीजधारक और बिल्डर के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई गई।
यह कार्रवाई न केवल जमीन को वापस शासकीय रिकॉर्ड में लाने के लिए महत्वपूर्ण थी, बल्कि भू-माफियाओं के खिलाफ एक सख्त संदेश भी थी। जनता और प्रशासन के बीच यह एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया, कि शासकीय भूमि पर कब्जा या अवैध प्लॉटिंग बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
बिरकोना का मामला: चुप्पी और अनदेखी क्यों?
जहां कुदुदंड के मामले में प्रशासन ने त्वरित और कठोर कार्रवाई की, वहीं बिरकोना की आदिवासी भूमि पर अवैध प्लॉटिंग के मामले में प्रशासनिक ढीलपोल देखने को मिली। शुरुआती चरण में नगर निगम ने कुछ कार्रवाई जरूर की, लेकिन एफआईआर दर्ज करने और दोषियों को सजा दिलाने में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
निगम आयुक्त ने एफआईआर की बात कही थी, लेकिन आज तक यह कार्रवाई नहीं हुई। वहां की स्थिति अब भी वैसी ही है जैसी पहले थी। सवाल यह उठता है कि जब एक मामले में बुलडोजर चल सकता है, तो दूसरे मामले में चुप्पी क्यों? क्या इसमें किसी बड़े राजनेता या प्रभावशाली व्यक्ति की संलिप्तता है? या फिर प्रशासनिक सेटिंग इतनी मजबूत है कि मामला रफा-दफा कर दिया गया?
एक को मां, एक को मौसी का रवैया
प्रशासन के इस दोहरे रवैये से जनता में असंतोष और भ्रम की स्थिति है। कुदुदंड मामले में सख्त कार्रवाई ने जहां प्रशासन को वाहवाही दिलाई, वहीं बिरकोना के मामले में कार्रवाई का अभाव एक गंभीर सवाल खड़ा करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि नियम और कानून कुछ चुनिंदा मामलों में ही लागू किए जा रहे हैं।
क्या जरूरी है?
1. समानता: कानून और नियम सभी के लिए समान होने चाहिए। अगर एक मामले में बुलडोजर चलता है, तो दूसरे मामले में भी वही सख्ती होनी चाहिए।
2. जांच: बिरकोना के मामले में कार्रवाई न होने के पीछे के कारणों की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए।
3. पारदर्शिता: प्रशासन को अपने फैसलों में पारदर्शिता लानी चाहिए, ताकि जनता को विश्वास हो कि कानून निष्पक्षता से लागू किया जा रहा है।
अवैध प्लॉटिंग जैसे मामलों में प्रशासन की दोहरी नीति न केवल जनता के विश्वास को तोड़ती है, बल्कि भ्रष्टाचार और पक्षपात को भी बढ़ावा देती है। कुदुदंड की कार्रवाई एक मिसाल हो सकती थी, अगर बिरकोना के मामले में भी समान रूप से सख्ती दिखाई जाती। प्रशासन को यह समझने की जरूरत है कि ऐसे भेदभावपूर्ण रवैये से न केवल उनकी छवि धूमिल होती है, बल्कि भ्रष्ट तत्वों को भी बढ़ावा मिलता है।
अब समय आ गया है कि प्रशासन इन मामलों में निष्पक्षता से कार्रवाई करे और “एक को मां, एक को मौसी” वाली नीति को खत्म करे।