बिलासपुर। अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के कुल उत्सव समापन समारोह में केरल के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ खान मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे। उनके साथ केंद्रीय मंत्री तोखन साहू ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इसके अलावा उपमुख्यमंत्री अरुण साव, विधायक अमर अग्रवाल, धरमलाल कौशिक, धरमजीत सिंह, और सुशांत शुक्ला अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित थे।
हालांकि, कार्यक्रम में कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव और मस्तूरी विधायक दिलीप लहरिया को निमंत्रण नहीं दिया गया। इस उपेक्षा पर कांग्रेस की युवा इकाई एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस ने नाराजगी जाहिर की। इन संगठनों के नेताओं ने इसे कांग्रेस विधायकों के प्रति असंवेदनशीलता और भेदभाव का उदाहरण बताया।
इस उपेक्षा के विरोध में एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं ने रामसेतु चौक में विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान विश्वविद्यालय प्रबंधन और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की गई। प्रदर्शनकारियों का आरोप था कि कांग्रेस विधायकों की उपेक्षा करके लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन किया जा रहा है।
राज्यपाल को काला झंडा दिखाने के प्रयास के दौरान पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रामसेतु चौक पर रोक लिया और गिरफ्तार कर लिया। प्रदर्शनकारी नेताओं को तोरवा थाने ले जाया गया, जहां विरोध जारी रखने की चेतावनी दी गई।
कार्यक्रम में कांग्रेस विधायकों की अनुपस्थिति ने सत्ताधारी और विपक्षी दलों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है। कांग्रेस के यूथ नेताओं ने इसे विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार द्वारा जानबूझकर किया गया कदम बताया। उनका आरोप है कि यह लोकतांत्रिक परंपराओं का उल्लंघन है और कांग्रेस विधायकों की लोकप्रियता को दबाने की कोशिश है।
राजनीतिक रूप से इस विवाद ने स्पष्ट किया है कि शिक्षा और राजनीति का गहरा संबंध है। ऐसे कार्यक्रमों का उपयोग राजनीतिक एजेंडा को साधने के लिए किया जाना न केवल शिक्षण संस्थानों की गरिमा को कम करता है, बल्कि छात्रों के बीच भी गलत संदेश देता है।
इस घटना ने अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय और राज्य सरकार के समक्ष कई सवाल खड़े किए हैं। क्या ऐसे कार्यक्रमों में राजनीतिक भेदभाव का स्थान होना चाहिए? क्या सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को समान अवसर मिलना चाहिए? यह घटना भविष्य में राजनीतिक और शैक्षणिक संस्थानों के संबंधों पर बहस को तेज कर सकती है।
बिलासपुर में हुए इस घटनाक्रम ने राजनीतिक और शैक्षणिक जगत में हलचल पैदा कर दी है। अब देखना होगा कि सरकार और विश्वविद्यालय प्रबंधन इस विवाद का समाधान कैसे करते हैं।