Friday, January 10, 2025
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बिलासपुर: 100 साल पुराने मिशन हॉस्पिटल पर चला निगम का बुलडोजर: इतिहास और विवाद का हुआ अंत…बाकी है कुछ यादें…

बिलासपुर। 100 साल पुराने मिशन हॉस्पिटल पर नगर निगम द्वारा की गई कार्रवाई ने पूरे शहर को झकझोर कर रख दिया है। कभी शहर की “लाइफलाइन” माने जाने वाले इस अस्पताल पर बुलडोजर चलने से इसकी ऐतिहासिक इमारत का अंत हो गया। अस्पताल के जर्जर हालत और लीज रिन्यूवल में अनियमितताओं के चलते यह फैसला लिया गया।

मिशन हॉस्पिटल की स्थापना 1885 में हुई थी। यह अस्पताल अपने समय में पूरे संभाग का सबसे प्रतिष्ठित और सुविधाजनक अस्पताल हुआ करता था। दुर्घटनाओं से लेकर गंभीर बीमारियों तक का इलाज यहां बेहतरीन डॉक्टरों और नर्सों द्वारा किया जाता था।

मरीजों की सेवा के प्रति समर्पित नर्सों और डॉक्टरों के प्रयासों को आज भी लोग याद करते हैं। यह अस्पताल कई पीढ़ियों की यादों से जुड़ा हुआ था और बिलासपुर ही नहीं, बल्कि आसपास के इलाकों के लिए भी एक महत्वपूर्ण चिकित्सा केंद्र था।

मिशन हॉस्पिटल की लीज वर्ष 2014 में समाप्त हो गई थी। इसके बाद भी अस्पताल का संचालन जारी रहा। इस दौरान आईसीयू, ओपीडी और अन्य चिकित्सा सेवाएं भी संचालित हो रही थीं। नगर निगम के अनुसार, सरकारी जमीन पर इस तरह से व्यवसायिक उपयोग अवैध था। अस्पताल के प्रबंधन ने लीज रिन्यूवल के लिए आवश्यक प्रक्रिया पूरी नहीं की, जिसके चलते नगर निगम को यह कड़ा कदम उठाना पड़ा।

अस्पताल की इमारत 100 साल पुरानी होने के कारण जर्जर हो चुकी थी। इस कारण मरीजों और कर्मचारियों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया था। किसी भी समय इमारत के गिरने का खतरा बना हुआ था, जो नगर निगम की कार्रवाई की मुख्य वजहों में से एक था।

मिशन हॉस्पिटल के साथ कई शहरवासियों की भावनाएं जुड़ी थीं। यह सिर्फ एक अस्पताल नहीं था, बल्कि एक प्रतीक था जिसने न जाने कितने परिवारों को चिकित्सा सुविधा और राहत प्रदान की। शहर के बुजुर्ग आज भी इसके नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टरों की सेवा भावना को सराहते हैं।

नया अध्याय या इतिहास का अंत?
मिशन हॉस्पिटल की जगह अब क्या बनेगा, यह सवाल अभी अनुत्तरित है। नगर निगम ने यह जमीन अपने कब्जे में ले ली है और भविष्य में इसे सार्वजनिक उपयोग के लिए विकसित किए जाने की संभावना है। हालांकि, इस ऐतिहासिक अस्पताल के समाप्त होने से शहर ने अपने एक अनमोल धरोहर को खो दिया है।

मिशन हॉस्पिटल की कहानी एक ऐसे संस्थान की है, जिसने न केवल चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी, बल्कि शहर के इतिहास का भी एक अहम हिस्सा रहा। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने और उन्हें समय पर कानूनी रूप से व्यवस्थित रखने की जिम्मेदारी हम सभी की है।

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