बिलासपुर, 11 जुलाई 2025। राइट टू एजुकेशन (RTE) एक्ट के तहत गरीब और कमजोर वर्ग के बच्चों को स्कूलों में प्रवेश न दिए जाने के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सख्त रुख अपनाया। इस संबंध में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राज्यभर के निजी स्कूलों की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जताई और शिक्षा विभाग को भी कठघरे में खड़ा किया।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली डिवीजन बेंच में हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि “राज्य में संचालित ऐसे सभी स्कूल जिनके पास विधिवत मान्यता नहीं है, उन्हें तत्काल बंद किया जाना चाहिए।” कोर्ट ने यह भी कहा कि सभी बच्चों को बिना किसी भेदभाव के RTE के प्रावधानों के अनुसार प्रवेश मिलना चाहिए।
एजुकेशन सेक्रेटरी से मांगा जवाब:
हाईकोर्ट ने राज्य के शिक्षा सचिव से पूरे मामले में स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि 5 अगस्त 2025 से पहले एफिडेविट के माध्यम से जवाब प्रस्तुत किया जाए, जिसमें यह बताया जाए कि अब तक कितने बच्चों को आरटीई के तहत दाखिला मिला, कितने वंचित रह गए, और किन स्कूलों में अनियमितताएं पाई गईं।
स्कूलों को चेतावनी
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई स्कूल RTE के तहत दाखिला देने से इनकार करता है या अवैध रूप से संचालित हो रहा है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। न्यायालय ने जोर दिया कि बिना मान्यता वाले स्कूलों को तुरंत बंद किया जाए और बच्चों के दाखिले की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और वैध होनी चाहिए।
क्या है मामला?
जनहित याचिका में यह कहा गया था कि राज्य के कई स्कूल गरीब बच्चों को आरटीई के तहत दाखिला नहीं दे रहे हैं। स्कूल प्रबंधन इस कानून की अनदेखी कर रहे हैं, जिससे हजारों बच्चों का भविष्य अधर में लटका हुआ है।
अगली सुनवाई
अब इस मामले में अगली सुनवाई 5 अगस्त को होनी है। उससे पहले राज्य सरकार और शिक्षा विभाग को कोर्ट में स्पष्ट स्थिति पेश करनी होगी।