बिलासपुर, 5 अगस्त 2025:
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राइट टू एजुकेशन (RTE) अधिनियम के तहत गरीब बच्चों को प्रवेश नहीं देने और बिना मान्यता के स्कूलों के संचालन को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने शिक्षा विभाग से इस गंभीर लापरवाही पर जवाब मांगा है और पूछा है कि आखिर क्यों ऐसे स्कूल संचालकों पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
मुख्य न्यायाधीश की डिवीजन बेंच में सोमवार को यह मामला सुनवाई के लिए प्रस्तुत हुआ था। कोर्ट ने राज्य सरकार और शिक्षा सचिव को निर्देशित किया कि वे 13 अगस्त तक शपथपत्र के माध्यम से स्पष्ट करें कि इस पूरे मामले में अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।
कोर्ट की कड़ी टिप्पणियां:
हाईकोर्ट ने तल्ख लहजे में टिप्पणी करते हुए कहा,
“गली-गली में मर्सडीज में घूमने वाले लोग स्कूल खोल रहे हैं, जिनके पास न तो मान्यता है और न ही बुनियादी सुविधाएं। यह शिक्षा के अधिकार कानून की सीधी अवहेलना है।”
कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि ऐसे मामलों में बच्चों को 5-5 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
क्या है पूरा मामला?
यह याचिका उन स्कूलों के खिलाफ दायर की गई थी, जिन्होंने आरटीई (RTE) कानून के तहत गरीब तबके के बच्चों को प्रवेश नहीं दिया, जबकि वे इसके लिए बाध्य थे। आरोप है कि ये स्कूल बिना मान्यता के चल रहे हैं और सरकारी सब्सिडी और नियमों की अनदेखी करते हुए मनमानी फीस वसूल कर रहे हैं।
कोर्ट की अपेक्षा:
- राज्य सरकार 13 अगस्त तक शपथपत्र के साथ स्थिति स्पष्ट करे।
- उन स्कूलों की सूची प्रस्तुत की जाए जो बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं।
- यह भी बताया जाए कि अब तक इन स्कूलों के खिलाफ कौन-कौन से कदम उठाए गए हैं।
- भविष्य में ऐसी गड़बड़ियों को रोकने के लिए सरकार की नीति और कार्ययोजना क्या होगी।
जनहित से जुड़ा मामला:
शिक्षा के अधिकार के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देना हर राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है। ऐसे में यदि बच्चों को शिक्षा से वंचित किया जाता है, तो यह केवल एक कानूनी उल्लंघन नहीं, बल्कि सामाजिक अन्याय भी है।