बिलासपुर। विकासखण्ड कोटा के ग्राम पंचायत छेरकाखांधा के लगभग 200 किसान इस साल धान विक्रय से वंचित रह गए हैं। गिरदावली (पंजीयन सूची) में उनका नाम नहीं जुड़ने या सूची से कट जाने के कारण अब उनकी मेहनत की कमाई मंडियों तक पहुँचने से पहले ही अटक गई है। खेतों में तैयार फसल खलिहान में पड़ी है, लेकिन शासन की प्रक्रिया के जाल में ये किसान आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहे हैं।
किसानों ने बताया कि हर साल की तरह इस बार भी उन्होंने धान की बुवाई की, मेहनत से फसल तैयार की और बिक्री की तैयारी में थे, मगर जब वे पंजीयन केंद्र पहुँचे तो उन्हें यह कहकर लौटा दिया गया कि उनका नाम सूची में नहीं है। कई किसानों ने आरोप लगाया कि उनके नाम जानबूझकर सूची से काटे गए हैं, जिससे अब वे समर्थन मूल्य पर धान बेचने के अधिकार से वंचित हो गए हैं।
इस स्थिति से किसानों में भारी आक्रोश और निराशा है। उनका कहना है कि यदि समय रहते प्रशासन ने गिरदावली सुधार की प्रक्रिया शुरू नहीं की, तो वे अपनी उपज बेच नहीं पाएंगे और उन्हें केसीसी ऋण भुगतान, बीज-खाद की अगली व्यवस्था, तथा परिवारिक जरूरतों को पूरा करने में गंभीर दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
समस्या की गंभीरता को देखते हुए कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव के नेतृत्व में ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों और किसानों ने जिला कलेक्टर बिलासपुर को ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में स्पष्ट मांग की गई है कि छेरकाखांधा के किसानों के नाम तुरंत गिरदावली में जोड़े जाएं, ताकि वे नियमानुसार धान विक्रय कर सकें।
ज्ञापन में चेतावनी दी गई है कि यदि 31 अक्टूबर 2025 तक किसानों के नाम पुनः पंजीयन सूची में नहीं जोड़े गए, तो रत्नपुर-कोटा मुख्य मार्ग पर चक्काजाम आंदोलन किया जाएगा।
ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों ने यह भी कहा है कि यदि प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया, तो आंदोलन की सम्पूर्ण जिम्मेदारी शासन और प्रशासन की होगी। इस संबंध में ज्ञापन की प्रति एसडीएम, तहसीलदार और थाना प्रभारी कोटा को भी भेजी गई है, ताकि तत्काल कार्रवाई सुनिश्चित हो सके।
मुख्य बिंदु:
- छेरकाखांधा ग्राम पंचायत के लगभग 200 किसान धान विक्रय से वंचित।
- गिरदावली सूची से नाम कटने के कारण संकट गहराया।
- 31 अक्टूबर तक समाधान न होने पर चक्काजाम आंदोलन की चेतावनी।
- प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की मांग।
किसानों की जुबानी:
“हमने पूरे साल मेहनत कर फसल तैयार की, अब बेचने की बारी आई तो नाम काट दिया गया। अगर यही हाल रहा, तो हम खेती छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे।” — एक प्रभावित किसान
यह मामला न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि किस तरह एक छोटी सी त्रुटि या देरी किसानों के पूरे साल की मेहनत पर पानी फेर सकती है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन किसानों की इस परेशानी को कब और कैसे दूर करता है।




