सीमा पर घुसपैठ की कोशिश में जुटा चीन का अब एक और चेहरा बेनकाब हुआ है। एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन दुनियाभर में 24 लाख अतिमहत्वपूर्ण लोगों के जासूसी करने में जुटा है। इस जासूसी को चीन की सेना और खुफिया एजेंसी से जुड़ी कंपनी झेन्हुआ डाटा इंफॉरमेशन टेक्नॉलजी कंपनी लिमिटेड अंजाम दे रही थी।
इन 24 लाख लोगों में 10 हजार लोग और संगठन भारत और करीब 35 हजार लोग ऑस्ट्रेलिया के थे। इनमें तीनों ही देशों की नामचीन हस्तियां शामिल हैं। भारत में राष्ट्रपति रामनाथ कोविद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी आदि शामिल हैं
इन लोगों की जासूसी
जिन लोगों की जासूसी की जा रही है उनमें राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके परिवार के सदस्य, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, अशोक गहलोत, अमरिंदर सिंह, उद्धव ठाकरे, नवीन पटनायक, शिवराज सिंह चौहान, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी, रेलमंत्री पीयूष गोयल, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत, सेना के कम से कम 15 पूर्व प्रमुखों, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे, सीएजी जीसी मूर्मू, स्टार्टअप टेक उद्यमी जैसे भारत पे के संस्थापक निपुण मेहरा, ऑथब्रिज के अजय तेहरान, देश के बड़े उद्यमी रतन टाटा और गौतम अडाणी जैसे लोगों शामिल हैं।
इन पर भी नजर
केवल प्रभावशाली हस्तियां ही नहीं, चीन की नजर देश के सभी क्षेत्रों में अहम लोगों और संस्थाओं पर है। इनमें अहम पदों पर बैठे नौकरशाह, जज, वैज्ञानिक, विद्वान, पत्रकार, अभिनेता, खिलाड़ी, धार्मिक हस्ती, कार्यकर्ता शामिल हैं। इतना ही नहीं आर्थिक अपराध, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, ड्रग्स तस्करी, सोना, हथियार या वन्यजीव तस्करी के सैकड़ों आरोपियों का भी पूरा डेटाबेस चीन ने जुटाया है।
कैसे हुआ खुलासा?
अखबार ने दावा किया है कि इसने बिग डेटा टूल्स के जरिए दो महीने से अधिक समय तक जेनहुआ ऑपरेशंस के मेटा डेटा की जांच की और विशाल लॉग फाइल्स से जासूसी की जद में आए भारतीयों के नाम हासिल किए। कंपनी इसे ओवरसीज की इन्फॉर्मेशन डेटाबेस (OKIDB) नाम दिया है। इसमें अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, यूनाइटेड अरब अमीरात का डेटा भी है। इसे शोधकर्ताओं के एक नेटवर्क के जरिए कंपनी से जुड़े एक सूत्र से हासिल किया गया, जोकि दक्षिण-पूर्व चीन के गुआनदोंग प्रांत में है। जोखिम और खतरे की वजह से सूत्र ने नाम गोपनीय रखने को कहा है। सूत्र ने वियतनाम के एक प्रफेसर के जरिए ऑस्ट्रेलिया, इटली, और लंदन के अखबारों को भी जानकारी मुहैया कराई है।
क्या है मकसद?
चीन इस डेटा को हाइब्रिड वॉर के लिए जुटा रहा है। इसके जरिए वह असैन्य तरीकों से अपना प्रभुत्व जमाना चाहता है और दूसरे देशों को नुकसान पहुंचाना चाहता है। कंपनी ने खुद इसे ”इन्फॉर्मेशन पलूशन, परसेप्शन मैनेजमेंट एंड प्रोपेगैंडा” नाम दिया है। नाम से ही सबकुछ साफ हो जाता है कि चीन आखिर करना क्या चाहता है।
रिकॉर्ड दिखाता है कि कंपनी अप्रैल 2018 में रजिस्टर हुई थी और अलग-अलग देशों व क्षेत्रों में 20 प्रोसेसिंग सेंटर स्थापित किए। इसने चीनी सरकार और सेना को अपना ग्राहक बताया है। अखबार ने कंपनी को 1 सितंबर को मेल पर कई सवाल पूछे, जिनका जवाब नहीं दिया गया है, बल्कि 9 सितंबर को इसने वेबसाइट को भी बंद कर दिया।