बिलासपुर। उच्च शिक्षा विभाग ने राज्य की दो बड़ी निजी यूनिवर्सिटी MATS और ISBM का फर्जीवाड़ा पहले ही पकड़ लिया था, लेकिन किसी तरह कार्रवाई नहीं की। जांच समिति ने दोनों विश्वविद्यालयों के कामकाज पर कई आपत्तियां उठाई है।
याचिकाकर्ताओं ने दोनों विश्वविद्यालयों के खिलाफ की गई जांच की रिपोर्ट भी हाईकोर्ट में पेश की है। रायपुर निवासी संजय अग्रवाल व एक अन्य ने MATS और ISBM यूनिवर्सिटी द्बारा फर्जी डिग्रियां बांटने का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाई है। इसमें बताया गया है कि दोनों यूनिवर्सिटी अपने स्थापना काल से फर्जी डिग्रियां बांटते आ रही हैं। याचिका में उच्च शिक्षा विभाग द्बारा की गई जांच की रिपोर्ट संलग्न की गई है, जिसके अनुसार याचिकाकर्ता संजय अगवाल ने 7 जून 2021 को उच्च शिक्षा विभाग को दोनों यूनिवर्सिटी के खिलाफ शिकायत सौंपी थी। इस पर आईएएस की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर शिकायत की जांच की गई थी।
जांच में समिति ने पाया कि ISBM विश्वविद्यालय ने अपने कर्तव्यों के निर्वहन में कई अवैध कार्य किए हैं। 27 जुलाई 2021 को जारी जांच रिपोर्ट में यह पुष्टि की गई है कि ISउM विश्वविद्यालय के पास विद्यार्थियों का कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं है। जांच में यह चौंकाने वाला भी तथ्य मिला है कि सत्र 2017-18 में छह छात्रों को बिना फाइनल पासिंग के मार्कशीट दे दी गई है। न तो इनकी उत्तर पुस्तिका है और न ही ये किसी परीक्षा में शामिल हुए हैं।
जांच रिपोर्ट के अनुसार ISBM विश्वविद्यालय का पंजीयन मुंबई की एक फर्म के नाम पर है। विश्वविद्यालय ने 24 फरवरी 2018 को 2000 मार्कशीट की मांग की थी, लेकिन इससे अधिक 2010 अंकसूचियां वितरित की गई हैं। इसी तरह से शैक्षणिक सत्र 2019 के लिए क्रय आदेश क्रमांक 18 में 2000 मार्कशीट मांगी की गई थी, जिसके खिलाफ 2030 मार्कशीट वितरित की गई थी। इस मामले में कुलपति, उप कुलपति, सहायक परीक्षा नियंत्रक के बयान में विरोधाभास है।
मार्कशीट में आईएसबीएम विश्वविद्यालय का होलोग्राम और हस्ताक्षर अलग-अलग हैं। कैदी बलराम साहू की मार्कशीट पर जो हस्ताक्षर पाए गए हैं, वह प्रथमदृष्टया नियंत्रक के वास्तविक हस्ताक्षर के समान हैं। इसी तरह से MATS यूनिवर्सिटी ने भी अंकसूचियां जारी की हैं। MATS और ISBM ने जो अध्यादेश जारी किया है, उसके अनुसार इस संस्थान में नियम के अनुसार प्रवेश किया जाएगा। लेकिन यह सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। ये दोनों यूनिवर्सिटीज बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही हैं।