बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर में जिला न्यायपालिका के सशक्तिकरण और सिविल व आपराधिक विधियों पर मंथन के उद्देश्य से एक राज्य स्तरीय कान्फ्रेंस का आयोजन किया गया। इस महत्वपूर्ण कान्फ्रेंस की गरिमा सर्वोच्च न्यायालय के तीन सम्माननीय न्यायमूर्तिगणों—जस्टिस सूर्यकान्त, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा, और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की उपस्थिति से बढ़ी। इस अवसर पर न्यायाधीशों और विधिक विद्वानों ने जिला न्यायपालिका की महत्ता और इसे सशक्त बनाने की दिशा में विचार-विमर्श किया।
न्यायपालिका की भूमिका और जिला न्यायालयों का महत्व
जस्टिस सूर्यकान्त ने अपने उद्घाटन भाषण में जिला न्यायपालिका की जिम्मेदारियों और उसकी महत्ता पर बल देते हुए कहा कि जिला न्यायालय न्याय प्रणाली का आधार स्तंभ हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे पहला संपर्क जिला न्यायपालिका के माध्यम से होता है, इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि जिला न्यायपालिका स्वतंत्र, निडर और निष्पक्ष हो। जस्टिस सूर्यकान्त ने यह भी उल्लेख किया कि जिला न्यायाधीशों को प्रक्रियात्मक और तकनीकी अड़चनों से प्रभावित हुए बिना न्यायिक निर्णय लेने की दिशा में दृढ़ संकल्पित होना चाहिए।
मुकदमेबाजी में बढ़ती तुच्छ मामलों की प्रवृत्ति
अपने भाषण में जस्टिस सूर्यकान्त ने तुच्छ मुकदमेबाजी (फ्रिवोलस लिटिगेशन) की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में झूठ और बेबुनियाद मामलों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। एक सशक्त और निडर जिला न्यायपालिका तुच्छ मुकदमेबाजी को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकती है। इसके साथ ही उन्होंने न्यायाधीशों से आग्रह किया कि वे साहस और ईमानदारी से निर्णय लें और हमेशा अपनी अंतरात्मा के प्रति ईमानदार रहें।
संविधान में निहित न्यायपालिका की जड़ें
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा ने अपने भाषण में जिला न्यायपालिका की संवैधानिक महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जिला न्यायपालिका केवल विधिक न्यायालय नहीं हैं, बल्कि इसकी जड़ें भारतीय संविधान में गहरी हैं। उन्होंने इसे समाज की जड़ों से जुड़ा हुआ बताया, जहां स्थानीय प्रथाओं, रीति-रिवाजों और बोली का गहरा ज्ञान न्यायाधीशों को न्यायिक प्रक्रिया में मदद करता है।
जिला न्यायपालिका को सशक्त बनाने की आवश्यकता
जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने जिला न्यायपालिका के कानूनी प्रावधानों के प्रति दृष्टिकोण और उनके निर्वचन की महत्ता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जिला न्यायालयों द्वारा किए गए कानूनी प्रावधानों के निर्वचन उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के लिए आधार प्रदान करते हैं। इस संदर्भ में जिला न्यायपालिका को अत्यंत सतर्क रहना चाहिए और नए कानूनों को लागू करने में कुशलता दिखानी चाहिए।
कान्फ्रेंस के तकनीकी सत्र
कान्फ्रेंस के दौरान दो तकनीकी सत्र आयोजित किए गए, जिनमें न्यायिक अधिकारियों ने सिविल और आपराधिक विधियों पर विचार-विमर्श किया। सत्रों में “पीड़ित प्रतिकर अधिकार,” “दंड,” “साक्ष्य अभिलेखन में न्यायाधीश की भूमिका,” और “शीघ्र विचारण व न्याय के बीच संतुलन” जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गहन चर्चा की गई। इन सत्रों ने प्रतिभागी न्यायाधीशों को उनके कार्य में और अधिक दक्ष और सक्षम बनाने का कार्य किया।
इस ऐतिहासिक कान्फ्रेंस ने जिला न्यायपालिका के सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति रमेश सिन्हा ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि यह कान्फ्रेंस जिला न्यायपालिका को सशक्त करने की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह कान्फ्रेंस न्यायिक अधिकारियों को बेहतर निर्णय लेने और न्याय प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करेगी।
इस कान्फ्रेंस में छत्तीसगढ़ जिला न्यायपालिका पर आधारित एक पुस्तक “डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स ऑफ छत्तीसगढ़” का भी अनावरण किया गया, जिसमें राज्य के विभिन्न जिला न्यायालयों की जानकारी और न्यायिक अधिकारियों के विद्वत्तापूर्ण लेख शामिल हैं।
कुल मिलाकर, इस राज्य स्तरीय कान्फ्रेंस ने न्यायिक अधिकारियों के ज्ञान और समझ को बढ़ाने के साथ-साथ जिला न्यायपालिका को और अधिक सशक्त और प्रभावी बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर स्थापित किया है।