Tuesday, October 22, 2024
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बिलासपुर: संदेह साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला…

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिविजन बेंच ने एक दोहरे हत्याकांड में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसमें उन्होंने संदेह और साक्ष्य के बीच के अंतर को स्पष्ट किया है। इस मामले में जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की बेंच ने राज्य शासन की अपील को खारिज कर दिया, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपितों को संदेह के लाभ के आधार पर बरी किए जाने के खिलाफ अपील की गई थी।

मामला: विवाह समारोह में हुआ विवाद

मामला 23 अप्रैल 2009 का है, जब मोहन लाल बंदे और संजय बंदे जयरामनगर में एक विवाह समारोह में शामिल हुए थे। वहां मोहनलाल बंदे द्वारा महिलाओं और लड़कियों की तस्वीरें खींचने पर विवाद हुआ, जो बाद में हिंसक झगड़े में बदल गया। इस झगड़े में मोहनलाल बंदे और संजय बंदे घायल हो गए। मस्तूरी थाने में शिकायत दर्ज कराने के बाद घायलों को मस्तूरी स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। गंभीर हालत के कारण उन्हें सिम्स अस्पताल रेफर किया गया, जहां संजय बंदे की मृत्यु हो गई। बाद में, मोहनलाल को अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी भी मौत हो गई।

पुलिस कार्रवाई और ट्रायल कोर्ट का फैसला

पुलिस ने इस मामले में आठ आरोपितों को गिरफ्तार किया और उनके खिलाफ बलवा और हत्या के आरोप में मुकदमा दर्ज किया। 26 फरवरी 2011 को ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में आरोपितों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य न होने के कारण संदेह का लाभ आरोपितों को दिया गया।

हाई कोर्ट की सुनवाई

राज्य सरकार ने ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में अपील की। डिविजन बेंच ने सुनवाई के बाद अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संदेह चाहे जितना भी मजबूत हो, वह साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता।

मामले के तथ्यों की समीक्षा के दौरान यह पाया गया कि मोहनलाल बंदे की मृत्यु से पूर्व वह अत्यधिक शराब के नशे में था। इसके अलावा, मोहनलाल के पेट में पुराना दर्द था, जिसका इलाज चल रहा था, लेकिन कोई बाहरी चोट या मारपीट के संकेत नहीं मिले। संजय बंदे की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी पेश नहीं की गई थी, जिससे उनकी मृत्यु के कारणों की पूरी जानकारी सामने नहीं आ पाई। गवाहों के बयान भी विरोधाभासी थे, जिससे मामले में ठोस साक्ष्य का अभाव रहा।

इस निर्णय ने न्यायिक प्रक्रिया में साक्ष्य की भूमिका को एक बार फिर से स्पष्ट किया है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि साक्ष्य के बिना केवल संदेह के आधार पर किसी को दोषी ठहराना उचित नहीं है। यह फैसला न्यायिक तंत्र में साक्ष्य के महत्व को रेखांकित करता है और यह संदेश देता है कि कानून की प्रक्रिया में निष्पक्षता और प्रमाण की प्रधानता होनी चाहिए।

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